Post – 2018-09-18

मैंने कल प्रतिभा के उस कमाल की बात की थी जिसके ऊपर लोग दाद देते नहीं थकते, पर जिसको सिरजने या सुलझाने के बाद रचनार स्वयं विस्मित हो जाता है कि उससे यह संभव कैसे हुआ। उसे विश्वास नहीं हो पाता कि यह उसने ही किया है। यह उसकी नजर में भी उसके सामर्थ्य से परे का कुछ होता है। इसीलिए इसके पीछे किसी रहस्यमय शक्ति की भूमिका की बात प्राचीन काल से लेकर आज तक के रचनाकार करते आए हैं। मेरे साथ भी बार बार होता है। और तो और जो शेर पहले कहीं दर्ज नहीं करता था, पिछले तीन साल से दर्ज ही नहीं सार्वजनिक भी कर देता हूं, गंभीर लेखन के बीच में या ठीक बाद में पूरा का पूरा तैयार हो कर उपस्थित हो जाती है।मेरी जानकारी के बिना, जब मेरा चेतन किसी दूसरे विषय पर व्यस्त था उसी समय कौन किस तरह इसे रच रहा था। अज्ञेय जी की एक पंक्ति है ‘एक बूंद सहसा उछली’। संभवत: एेसे ही किसी अनुभव परलिखी। गई लगती है। यदि मेरा अनुमान सही है तो कितना कठिन है इस मामूली सी पंक्ति को समझ पाना! आज से पहले मुझे भी इसका यह अर्थ नहीं सूझा था। परन्तु मेरा प्रश्न इस बात को लेकर नहीं था।