आइए_शब्दों_से_खेलें (7)
पलक
पलक का अर्थ है पालक या रक्षक। इसे आंख को ढकने की भूमिका के कारण पालक या रक्षक माना गया? पलक, उसी पल से बना है जिससे द्वार का पल्ला, पाली (वह भाषाजिसमें बुद्ध के संदेशों की रक्षा की गई)। मूल इसका भी जल है, यह प्ल/पल से प्रकट है और इसलिए इसका प्रयोग पानी (पल्लव=पोखर)> ठंढ(पाला), दूध (त. पाल्, ते. पालु= दूध) > १.पालक= रक्षक, पोषक,२. पालना= पोषण करना, २. बच्चे का झूला> पालकी= झूले जैसा वाहन, ३. पल्ला= गोद, आँचल, ४.पल्लू आँचल का छोर) >पलस्ति = श्वेतकेश (वृद्ध), से प्रकट है। पल्ला/पलक= आवरण या ढक्कन, पाली = पिटारी प्रकाश के विलोम के कारण जल से संबंध रखते हैं।
पलक गिरने या गिराने के लिए पलक झपकना / झपकाना प्रयोग चलता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ढकना या ढक्कन बन्द करना। भोजपुरी में मूज और कुश के गाभे से बुनी पिटारी को झांपी कहते थे। झपना उसके ऊपरी ढक्कन को कहते थे। इसी से झेंपना लज्जित अनुभव करना, सामना न कर पाना, नजर झुका कर बात करना मुहावरा बना है। झांसा देना भी इसी कड़ी में आता है, और झंप =नींद और झांपना भी, यद्यपि झपटना और झपट्टा का संबंध सन्दिग्ध है।
पलक में तीनों अक्षर स्वरान्त हैं इसलिए यह सारस्वत मूल का नहीं हो सकता, न ही सारस्वत रुचि के अनुरूप था। संस्कृत में पलक के लिए अक्षिच्छद मिलता है। अंग्रेजी में इसी अवधारणा पर आईलिड (eyelid) का प्रयोग मिलता है। झेंप में आरंभ ही सघोष महाप्राणता से है इसलिए इसके विषय में भी यही कहा जा सकता है। भोजपुरी में भी ‘झ’ की ध्वनि किसी अन्य भाषाई समुदाय के समावेश का परिणाम है, जिसका एक जत्था कभी पश्चिम की ओर भी पहुंचा था। झज्झर, झंग, कंझावला जैसे स्थान नाम इसकी याद दिलाते हैं। हिंदी में पलक और झेंपना दोनों देववाणी/ भोजपुरी के माध्यम से पहुँचे हैं।
बरौनी
बरोनी में बर तो बाल का सामासिक रूप है, जो वैदिक में भी पहुँचा था यह हम देख आए हैं, परंतु यह संस्कृत में स्वीकार्य न हुआ। बरौनी में भी पश्चिमी प्रभाव है। संस्कृत में इसे स्थान न मिला। इसमें औनी (अउनी) अवली है जिससे दीपावली में पाते हैं। सं. में इसके लिए पक्ष्म और अक्षिलोम का प्रयोग मिलता है। पक्ष्म का भाव है, जिस तरह पक्षी के डैने के पंख में पंखदंड से रोमावली निकली होती है उस बनावट जैसी(रोमावली)। पक्ष्म की कोमलता का विस्तार पशम में हुआ है, जो फारसी में भी पहुंचा है। पशमीना इसी से निकला है। वार/बाल की तरह पशु के रोम के लिए प्रयोग के कारण इसका अर्थ ह्रास हो गया जिससे ‘पशम बराबर’ समझने या न समझने के मुहावरे निकले हैं। अंग्रेजी में बरौनी के लिए आईलैश का प्रयोग मिलता है। मेरी बात कोई मानेगा नहीं, पर आँख मारने की आदत लोगों को अंग्रेजी के आई लैश से परिचित होने के बाद ही पड़ी होगी। वैसे सुना है, घर में बोरिया तक न हो और कोई प्रिय व्यक्ति आ जाए तो लोग पलकों से कुर्सी का काम भी लेते हैं और कोई बहुत सम्मानित व्यक्ति पधार जाए तो यह रेड कार्पेट का भी काम देती हैं।