#विषयान्तर
राजनीति में कुछ भी गलत नहीं है, सिवाय पराजय के।
समाज में कुछ भी सही नहीं जो उसे किसी रूप में विकृत करे।
सर्जक और चिंतक की राजनीति के केन्द्र में समाजदृष्टि होनी चाहिए, किसी दल की हार या जीत नहीं।
जीतने के लिए जितने तरह के जहर समाज में घोले जाते हैं वे जहर घोलने वालों की विफलता के बाद भी बने रहते और स्थाई विकृतियां पैदा करते हैं।
इनसे आगाह करना सर्जक और चिंतक की राजनीतिक पहचान है। इसके अभाव में वह किसी का टहलुआ कुत्ता बन कर रह जाता है।