Post – 2018-06-03

#विषयान्तर

पाणिनि और आज की राजनीति

मेरे सामने है यह प्रश्न लगातार बना रहा है कि जो बातें मुझे दिखाई देती हैं, दुनिया के दूसरे देशों के लोगों को दिखाई देती हैं, अपने देश की जनता को दिखाई देती है वे हमारे बुद्धिजीवियों को क्यों नहीं दिखाई देती। मैं इस
समस्या मैं उलझा था कि पाणिनि हाजिर हो गए। उनके भूले सूत्रों में से कुछ सूत्र एक पर एक समस्या का समाधान करने के लिए कतार में खड़े हो गए।

मेरी समझ में नहीं आया पाणिनि व्याकरण लिख रहे थे, या 21वीं शताब्दी के भारतीय राजनीतिक यथार्थ पर टिप्पणी कर रहे थे। उनके भाषा ज्ञान का कायल था, उनके भविष्यवक्ता रुप को पहली बार देख पाया। और तभी मुझको यह भी पता चला मोदी विरोधी इतिहास में पहुंचकर भी कितना अनर्थ कर सकते हैं। वह सिंह जो पाणिनि को खा गया था उसे जरूर आज के मोदी विरोधियों ने भेजा होगा। वे भारत पर हमला करने के लिए इतिहास में आर्य भेज सकते हैं तो शेर तो चिड़ियाघर का पिंजड़ा खोल कर भी भेज सकते बैं। पाणिनि को खाने के पहले उसने दहाड़ते हुए कहा था, ‘तुम मुझे सही रास्ता दिखाओगे तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा।’ यह दूसरी बात है उसका यह वाक्य ढाई हजार साल बाद अकेले मैं ही सुन पाया।

गलती पाणिनि की थी। उन्होंने मेरी शंका का समाधान करते हुए कहा थाः
‘अदर्शनं लोपः’, अर्थात जब देखो ही नहीं तो जो है वह है ही नहीं। यदि आपको लगता हो कि मैं खींचतान कर रहा हूं, तो देखिए इसको समझाते हुए काशिका सूत्रवृत्ति भी कहती है, ‘यत् भूत्वा न भवति, तत् अदर्शनम्’ जो हो कर भी न हो वह अदर्शन है। कुछ और समझाते हुए कहा ‘अनुपलब्धिः वर्णविनाशः’ जिनको कुछ मिलता रहा है, मिलना बन्द हो जाय तो उनका विनाश हो जाता है। मैं पहले समझा चुका हूं कि वर्ण का मतलब अपर पक्ष भी होता है।

विपक्ष की समझ में केवल इतनी बात आई कि इस मोदी के कारण अब हमारे विनाश के दिन आ गए हैं। इसे हटाओ नहीं तो हम कहीं के न रह जाएंगे। राजनीतिक दलों को ऐसा लगे तो हैरानी की बात नहीं, परंतु बुद्धिजीवियों को भी ऐसा लगने लगा, यह कुछ मनोरंजक बात अवश्य है।

जो भी हो बुद्धिजीवियों के सहयोग से राजनीतिक दलों ने सोचा मरना ही है तो साथ मरेंगे इसलिए सभी मिलकर इकट्ठा हो जाओ, पाणिनि इस पर भी कटाक्ष कर बैठेः
‘सर्वादीनि सर्वनामानि॥’ अरे भाई, कोई एक नाम तो चुनते ह, कोई एक नेता तो होता, सबका नाम जिसमें अल्लाह की जीत, एक दूसरे का निषेध करता हुआ क्रास, जय भीम सेना, और कर्णी सेना, कुकरनी सेना सभी शामिल हो जाएं, यह कैसे चलेगा । एक व्याकरण के जानकार बुद्धिजीवी ने उलट कर बताया, ‘सर्व’ के आगे जो आपने ‘आदीनि’ लगाया है उसके कारण ऐसों को लिया तो तैसों के भी लेना पड़ा।

पाणिनि बोले वह सब तो ठीक है, परंतु आपस में इतने अलग होते हुए भी सभी एक ही बात क्यों बोलते हो ‘मोदी हटाओ मोदी हटाओ।’ तुम जानते हो जब सभी लोग एक ही बात कहें तो इसका अर्थ होता है, किसी ने कुछ कहा ही नहीं। किसी के पास विचार ही नहीं हैः
‘स्वं रूपं शब्दस्याशब्दसंज्ञा’ । एक ही रूप वाले शब्दों को अशब्द कहा जाता है। हजार बार चिल्लाओ किसी को सुनाई न देगा।

अब आप ही सोचिए, जो राजनीति का विरोध होने पर आदमी की हत्या कर के पेड़ के ऊपर टांग देते हैं, वे इतनी तंज बर्दाश्त करने के बाद पाणिनि को मारने के लिए शेर नहीं भेजते तो और क्या करते।

परन्तु जब वह शेर झपटा तो पाणिनि ने क्या शाप दिया वह भी केवल मुझे सुनाई दियाः

‘लोपः साकल्यस्य’, इन सबका लोप होगा। कुछ लोग कहेंगे, शुद्ध पाठ तो ‘लोपः शाकल्यस्य’ है, वे कहते हैं तो कहने दीजिए। मैं, आधुनिक चिंताधारा के प्रभाव में, जो लिखा है उसे उस रूप में पढ़ना चाहता हूं, जिससे मैं जो चाहता हूं उसे सिद्ध कर सकूं।