गांधी का रास्ता
आज के बौखलाहट भरे माहौल में जिसमें दिशाएं तक खो गई हैं, जिसमें जो गलत नहीं लगते वे भी सही नहीं लगते, जो बुरे नहीं लगते मैं भी भले नहीं लगते, जहां अंधेरा नहीं है वहां भी कुछ दिखाई नहीं देता, खुली हवा में भी घुटन महसूस होती है, वहां गांधी अकेले ऐसे दीपस्तंभ दिखाई देते हैं जिससे हम अपने भटकाव मैं भी सही कार्यदिशा तय कर सकें। गांधी मेरे लिए आदर्श नहीं है । उनका जीवन मैं जीना नहीं चाहूंगा। उनको कई तरह की बीमारियां थीं मैं उनसे उनकी बीमारियां नहीं लेना चाहूंगा हम गांधी से सीख सकते हैं, गांधी बनकर जी नहीं सकते।
हमारे देश की सामाजिक अधोगति का प्रधान कारण यह है कि इसका बौद्धिक नेतृत्व मार्क्सवादियों के हाथ में रहा है जिनकी जड़ें इस देश और समाज में न थीं। उनके द्वारा किए गए सत्यानाश का कारण यह है कि वे गांधी को समझने से इनकार करते रहे, जब कि भारतीय परिवेश में गांधी मार्क्स के आधुनिक संस्करण हैं। उन्हें सत्ता की चिन्ता थी, देश हित की नहीं। उनके बौद्धिक कविता में नाले (आर्तनाद) भरते थे और ऐयाशों की जिन्दगी जीते थे। उनके बच्चे हिन्दुस्तानियों अंग्रेज बनाने वाली अंग्रेजी सिखाने और दिमागी तौर पर देश की हर चीज से नफरत की आदत डालने वाले, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का रास्ता दिखाने वाले स्कूलों में तैयार होते रहे और वे देश को जादूगरों की तरह क्रान्ति के सपने द्िखाते रहे। वे वाचाल थे, पर विश्वसनीय नहीं। कभी उन्होंने जितनी धूर्तता से मजदूरों का उपयोग करते हुए कल कारखाने ही बंद करा दिए उसी तरह आज छात्रों का उपयोग करते हुए शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने पर उतारू हैं । विश्वविद्यालयों को विष-विद्यालय बनाया जा चुका है इसलिए छात्रों के विषय में गांधी की सलाह को कुछ सूत्रों में रखना चाहेंगेः
1. विद्यार्थियों को दलबंदी वाली राजनीति में कभी शामिल नहीं होना चाहिए। विद्यार्थी विद्या के खोजी और ज्ञान की शोध करने वाले हैं, राजनीति के खिलाड़ी नहीं।
2. उन्हें राजनीतिक हड़तालें नहीं करनी चाहिए। विद्यार्थी वीरों की पूजा चाहे करें, उन्हें करनी चाहिए; लेकिन जब इनके वीर जेलों में जाएं, या मर जाएं, या यूं कहिए कि उन्हें फांसी पर लटकाया जाए, तो उनके प्रति भक्ति प्रकट करने के लिए उनको उन वीरों के उत्तम गुणों का अनुकरण करना चाहिए, हड़ताल नहीं।
3. पश्चिम की भद्दी नकल और शुद्ध तथा परिष्कृत अंग्रेजी बोलने व लिखने की योग्यता से स्वतंत्रता देवी के मंदिर मैं एक भी ईंट नहीं जुड़ेगी।
4. विद्यार्थियों को अपनी सारी छुट्टियां ग्राम सेवा में लगानी चाहिए। इसके लिए उन्हें मामूली रास्तों पर घूमने जाने की बजाए उन गांव में जाना चाहिए जो उनकी संस्थाओं के पास हों। वहां जाकर उन्हें गांव के लोगों की हालत का अध्ययन करना चाहिए और उनसे दोस्ती करनी चाहिए। इस आदत से वे देहात वालों के संपर्क में आएंगे और जब विद्यार्थी सचमुच में जाकर उनके बीच रहेंगे तब पहले के कभी-कभी के संपर्क के कारण गांव वाले उन्हें अपना हितेषी समझकर उनका स्वागत करेंगे न कि अजनबी मान कर उन पर संदेह करेंगे।
5. विद्यार्थियों को अपनी राय रखने और उसे प्रकट करने की पूरी आजादी होनी चाहिए। उन्हें जो भी राजनीतिक दल अच्छा लगता हो, उसके साथ खुले तौर पर सहानुभूति रख सकते हैं। लेकिन मेरी राय में जब तक वे अध्ययन कर रहे हैं, तब तक उन्हें कार्य की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। कोई विद्यार्थी अपना अध्ययन भी करता रहे और साथ ही सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी हो यह शक्य नहीं।
हमने ऊपर की पंक्तियां उनके विचारों के संग्रह ‘मेरे सपनों का भारत’ से ली है जो उनके अन्यत्र प्रकाशित विचारों का सार संग्रह है। हम जानते हैं गांधी जी के इन विचारों का समर्थन करने वाला कोई शिक्षा शास्त्री या कुलपति आज के विषाक्त पर्यावरण में शैतान जैसा प्रतीत होगा और इसी से हम समझ सकते हैं कि जिनके हाथ में देश का बौद्धिक नेतृत्व था वे देश और समाज को किस दिशा में ले जाने का प्रयत्न करते रहे हैं और इसके बावजूद आज की अधोगति के लिए वे अपनी जिम्मेदारी तक स्वीकार नहीं करेंगे। यदि मार्क्सवादियों ने गांधी से केवल इतनी ही सीख ली होती तो क्या मार्क्सवाद भारत में अप्रासंगिक हो पाता?