Post – 2018-05-02

राजनीतिक कारणों से बौद्धिक पर्यावरण इतना सतही बना दिया गया है कि उतावली में जुमलेबाजी के चक्कर में बुद्धिजीवी से लेकर राजनीतिक जन तक जो कहना चाहते हैं उसके लिए सही मुहावरा तक नही तलाश पाते, जो परिणाम चाहते हैं उसके लिए सही रणनीति तक नहीं तय कर पाते और हडबडी इतनी कि चुप तक नहीं रह पाते कि सोचने के लिए शांत वातावरण तैयार हो.