Post – 2018-04-24

कुछ और व्यग्रता सूचक शब्द जल

व्यग्रता
सबसे पहले व्यग्रता को ही लें। यू तो जैसा मैं पहले कह आया हूं ‘वी’ स्वयं भी जल से ही संबंध रखता है, परंतु इस शब्द में यह उपसर्ग के रूप में ही प्रयोग में आया है इसलिए जल से संबंध तलाश करना है तो इससे आगे आए मुख्य शब्द – अग्र – में तलाश करना होगा, जिसमें -ता प्रत्यय लगा हुआ है। ‘अग्र’ ‘अत’ की तरह गति सूचक है यह तो विवाद से परे है और इसलिए संभावना है कि इसका अर्थ जल ही हो। भोजपुरी में एक शब्द है अगराना जिसका अर्थ है, इतराना, पुलकित हो कर ध्यानाकर्षण के लिए अटपटी क्रियाएं करना। हम आगे देखेंगे कि आनन्द और उल्लास परक सभी शब्द जल के नाद से जुड़े हैं। एक संभावना यह है कि ग्र (गर, गल – जल) में किसी चरण पर किसी भाषाई समुदाय के उच्चारण की सुकरता के चलते आदि में ‘अ़’ जुड़ गया हो, जैसे तमिल में अनेक संस्कृत शब्दों के मामले में देखने में आता है। जिनकी ध्वनिमाला में घोष ध्वनियां नहीं थीं उनको इनके उच्चारण में कठनाई होती रही होगी।

खेद
‘खेद’ को संस्कृत आचार्य ‘खिद्’ धातु से व्युत्पन्न करेंगे जिससे खिन्नता का भी समाधान हो जाता है और जिसमें भी थकान, उदासी, अवसाद आदि सिमट आते हैं। हमारी समस्या यदि केवल अर्थग्रहण की होती तो इससे हमारा काम चल जाता, जैसा चलता आया है और आगे भी चलता रहेगा। हमारी समस्या व्युत्पत्ति की नहीं उत्पत्ति की है, यह कि कैसे वह अर्थ उस शब्द से या उसके लिए कल्पित धातु से जुड़ा । इन अमूर्त मनोभावों से कोई ध्वनि निकलती नहीं, जल ही
निःशब्द वस्तुओं और दशाओं के लिए संज्ञा का एकमात्र स्रोत है। हमारी जानकारी में ‘ख’ का अर्थ शून्य, छिद्र, आकाश है, जल नहीं। ख को खे करने से अर्थ वही रह जाता है- खेचर=खग । दूसरा कोई शब्द जल से सीधे जुड़ता दिखाई नहीं देता। उबलते पानी से उत्पन्न ध्वनि को खदबदाना कहते हैं। पर विक्षोभ के लिए वह भले उपयुक्त हो, खिन्नता के लिए। इस टोह में हम एक रोचक निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। ‘ख’ का मूल अर्थ जल था। आखिर आकाश, शून्य, और छिद्र के साथ भी समस्या तो वही थी। यह ‘ख’ एक विराट संख्या ‘खर्व’ में भी है जब कि इसका एक अर्थ शून्य भी था जो ‘गर्व खर्व करने’ के मुहावरे में बचा रह गया है। नौ चालन के लिए खेना का प्रयोग आज भी बचा रह गया है। खेल का प्रयोग सर्वप्रथम जलक्रीड़ा के लिए हुआ और फिर यह क्रीड़ा के सामान्य अर्थ में प्रचलित हुआ । खेद का प्रयोग क्रीड़ाजन्य थकान के लिए हुआ और फिर इसका अर्थविस्तार उदासी, पश्चात्ताप और दुख आदि के लिए ।

क्षोभ
क्षोभ के आदि वर्ण ‘छ/क्ष’ का अर्थ जल है। यह बरसते पानी की ध्वनि है – छमाछम बरसात होना। यह ‘छल’, ‘छैल’, ‘छबीला’, ‘छाल’, और ‘छलना’/ ‘छलनी ‘ का भी जनक है । क्षम/ क्षमता में जल के ‘ऊर्जा’ या ‘शक्ति’ का भाव दृष्टिगोचर होता है तो ‘क्षमा’ में उसकी शीतलता या शामक भाव । ‘क्षोभ’ जल के उद्वेग और उससे उत्पन्न ध्वनि का अनुनाद है चाहे वह किसी अवरोध के कारण हो या तापमान के कारण। खलबली के साथ भी वही बात है चाहे वह मानसिक हो या सामाजिक। क्षोभ व्यक्ति तक सीमित रहता, जन या समाज से जुड़ने पर ‘विक्षोभ’ का प्रयोग अधिक प्रचलित है.

ग्लानि
ग्लानि का जल से संबंध बहुत स्पष्ट है। कल, खल, गल, घल, चल, छल, जल, झल और कर, खर, गर, घर, चर, छर, जर, झर ये सभी जल की ध्वनियां है और इसलिए इनका एक अर्थ जल है इसे विविध सन्दर्भों में लक्ष्य किया जा सकता है। ग्लानि में जमे हुए पानी के गलने या पिघलने का अर्थ रूढ़ हो गया जो इस मनोभाव के सर्वथा अनुरूप है।

कार्पण्य
ऊपर हम जलवाची शब्दों की जिस शृंखला का उल्लेख कर आए हैं उसे ध्यान में रखें तो कार्पण्य का भी जल का नाता स्पष्ट है। कर्प, कल्प, कल्पना, कृपा, सबकी जलपरकता की बात समझ आती है पर ‘कृपण’ की नहीं जब कि कृपणता ही कार्पण्य है । इसकी अवधारणा के पीछे ऋग्वेद में मानवीकृत बादलों का हाथ लगता है जो पानी चुराकर रखते हैं पर देते नहीं। इंद्रा इन्ही का वध करके जल को नीचे गिराते हैं.