Post – 2018-04-09

लघुता सूचक शब्द – २

रेणु
(इस चर्चा में यह बात दृष्टि से ओझल नहीं होनी चाहिए कि हम जल के नाद से भाषा की उत्पत्ति को दावे की पुष्टि में अपने प्रमाणों का, जहां जरूरी है वहां उनकी जांच करते हुए, संकलन कर रहे हैं। अत: ध्यान इस पर रहना चाहिए कि पानी से उसको व्युत्पादित करते हुए जो कुछ लिखा है वह पर्याप्त है या नहीं।)

हम पाते हैं बालू और मिट्टी के लिए प्रयुक्त शब्दों का मूल अर्थ जल है । यपरिस्थितिजन्य प्रमाण इस अनुमान का आधार हो सकता है, कि रेणु का, जो त्रसरेणु में भी आया है, पानी के आशय में कभी प्रयोग होता था पर इसका सीधा प्रमाण नहीं है। रे/रै/रयि का अर्थ अवश्य जल, धन, प्रकाश आदि है। रण का प्राचीन अर्थ जल रहा लगता है जिससे रण्य, और अरण्य=जंगल, रेगिस्तान, निकले हैं और संभव है अं. rain का भी इससे संबंध हो। सरस्वती की बाढ़ से तंग कवि कहता है ऐसा न हो हमें तुम्हारे क्षेत्र को छोड़ कर अरणय क्षेत्रों में जामा पड़े – मा त्वत् क्षेत्रात् अरण्यानि गन्म। रै से रेणु और रण्य दोनों निकले हों तो इसे सीधा संबंध माना जा सकता है ।

पुद्गल – में पुत/ पुद/बुद (जैसे अर्बुद् में) अर्थ जल है। पुत से पोतना, पुताड़ा आदि का संबन्ध है। हिं. में पुद केवल पुदीना में दिखाई देता है, तमिल मे पुदिय – नया में। pudding का इससे दूर का नाता हो सकता है जैसे सं. सूप, सूपकार का अं soup, supper और त. शाप्पाडु के बीच। हमारे लिए इतना पर्याप्त है कि पुद्गल का उदगम जलसूचक है।

अंश – अंश का प्रयोग भाग सूचक प्रयोजन के अतिरिक्त, दिन के लिए होता है और अंशु का किरण और आभा के लिए, इसलिए इसका प्राथमिक आशय जलपरक मानना होगा। अंशुक इसी तर्क से मुलायम वस्त्र, रेशम, के लिए और अंसल मुलायम के लिए (शतपथ )। यदि अश्रु अंसु/ आंसू का संस्कृतीकरण हो तो, इसका संबंध उस विस्मृत अर्थ से जुड़ जाएगा।

खंड – कन्, खन्, कांड, खंड/खांड़/ खंड़सारी का जल और रस से व्युत्पादन संभव है, पर इसकी व्युत्पत्ति की अन्य संभावना फिर भी बनी रहती है।

भाग – भग, सूर्य, पक् , भक् की उत्पत्ति किसी भांड के टूटने या लौ के धधक कर बुझने से उत्पन्न निर्वात को भरने के लिए वायु के दबाव से भी पैदा हो सकती है, पर पाक, पाकशंस, फा. पाक, पाकीजा आदि में जो पवित्रता है उसका जल से संबंध स्पष्ट है और उसी कारण यह भग = सूर्य, पकाना, पक्व, आदि के लिए प्रयोग में आ सकता है।

क्षुद्र – क्षुत्, क्षुध, पानी के छलकने से उपन्न धवनि से व्युत्पन्न प्रतीत होता है। सं. क्षुल्ल= छोटा, थोड़ा, अल्प; क्षुल्लक = छोटा, नीच, क्षुद्र। ऋग्वेद में क्षुमन्त का प्रयोग आहार और उपभोग के लिए आया है :
क्षुमन्तं वाजं स्वपत्यं रयिं दा: । ऋ.२.४.८
कृधि क्षुमन्तं जरितारं अग्ने, २.९.५
क्षुमन्तं चित्रं ग्राभं संगृभाय, ८.८१.१
क्षुमन्तं वाजं शतिनं सहस्रिणम् मक्षू गोमन्तं ईमहे। ८.८८.२
स नो क्षुमन्तं सदने वि ऊर्णुहि गोअर्णसं रयिं इन्द्र श्रवाय्यम् । १०. ३८.२
भोजन और पान की प्राथमिक संपल्पनाओं में अभेद रहा है इसीलिए बंगाली आज भी जल खाता है और संस्कृतज्ञ रस की चर्वणा करता है।