अभिनन्दन शर्मा ने विषयान्तर होने की, या मुख्य विषय से जुड़े पार्श्विक मुद्दों को स्थान देने की मेरी प्रवृत्ति को मुख्य विषय को समझने में बाधक बताया है। मेरे मन में इसे लेकर दुविधा लंबे समय से रही है पर लोगों को प्रचलित मान्यताओं से बंधा पा कर मैं सोचता हूं कि पहले, पहले से चली आरही गलत धारणाओं का खंडन जरूरी है अन्यथा वे उन्हीं को लेकर आशंका प्रकट करेंगे। जैसे पश्चिमी विद्वानों से पहले कभी सोम को नशा नहीं माना जाता था, उसे नशा चढ़ाने वाली सुरा के विपरीत गुणों वाला आह्लादक पेय माना जाता था, आज प्राय: सुनने को मिल जाता हे कि ऋषि-मुनि भी तो सोमपान (सुरापान) करते थ, अत: लगा इसका कारण बताते हुए खंडन किए बिना मेरी बात समझने में बाधा पहुंचेगी। ऐसा ही अन्यत्र भी।
मै विवेचन पद्धति बदलने से पहले अन्य मित्रों की राय और अपना अनुभव जानना चाहता हूं।