भाजपा या उनकी आलोचना से पीड़ित हो कर एक मित्र ने गांधी के चेलों जैसा कोई संबोधन करते हुए अपना उत्तर दिया है। मेरा दुर्भाग्य की चेला तो मै अपने गुरुजनों का भी नहीं बना, पर जिस सम्मान भाव के कारण किसी को किसी का चेला कह दिया जाता है, उससे अधिक सम्मान भाव मेरे मन में गांधी के लिए, यह मानते हुए भी कि उन्होंने बहुत भयंकर गलतियां की हैं, है। मेरे मित्रों, पाठकों और प्रशंसकों में खासी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो, संघ से जुड़ाव रखते हैं और भाजपा के प्रति हल्की आलोचनात्मक दृष्टि रखते हुए भी, उसके प्रबल समर्थकों में हैं। वे यह भी जानते हैं कि मैं गांधी को बीसवीं शताब्दी का आश्चर्य मानता हूं। आश्चर्य पैदा करने की ताकत उनकी महिमा में नहीं है उनकी साधारणता में है । साधारण होना कितना चुनौती भरा हो सकता है, यह गांधी को पढ़ने और जानने के बाद ही पता चलता है । मैंने जब-जब गांधी को पढ़ा है, कुछ भी,, कहीं से भी, तो उससे पहले मेरी जो हैसियत थी उसके बाद उससे ऊंची हुई है। इसलिए मैं अपने मित्रों को यह सलाह देता हूं कि वे और कुछ नहीं सत्य के प्रयोग को ध्यान से, घबराहट में नहीं, वितृष्णा पूर्वक नहीं, मन का संतुलन खोए बिना शांति से, धीरे-धीरे पढ़ें और उसके बाद बताएं कि क्या उन पर कोई असर हुआ । यदि उन्होंने पढ़ रखा है, तो अवश्य बताएं कि वह पढ़ चुके हैं। मैं ऐसे लोगों की संख्या जानना चाहता हूं जिन पर गांधी पढ़ने के बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता।