हमारी भाषा (५)
तर से तर्पण
हमारे पास आज की व्यस्तता में रात को चांद और तारों तक को देखने का समय नहीं रह गया है। यान्त्रिक सुविधाओं के साथ हमारी अनेक नैसर्गिक वृत्तियाँ या तो नष्ष्ट हुई हैं, या इतनी मन्द पड़ चुकी हैं कि उन्हें सक्रिय करने के लिए शिक्षण और अभ्यास की जरूरत पड़ती है। हमारा अनुभव संसार सिकुड़ा है और अपनी पेशियों और दिमाग पर पड़ने वाले जोर को यन्त्रों को सौंप कर हम शारीरिक और मानसिक रूप में कमजोर होते जा रहे हैं। गाड़ी पर दौड़ने वाले को चलने में दिक्कत नहीं भी हो तो भी आलस्य लगने लगा है, और दौड़ने मे वह अक्षम हो गया है, गणनायंत्र की मदद लेने वाला मामूली जोड़ भाग तक नहीं कर पाता, और कंप्यूटर पर लिखने वाले को लिखना बोझ लगता है, और लिखावट बच्चों या नाममात्र के साक्षरों जैसी होती है। यन्त्रों के विकास क्रम में लंबे समय से चले आरहे अदृश्य पर निरन्तर ह्रास को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि आज से हजारों साल पहले के हमारे पूर्वज हमसे जानते बहुत कम थे, परन्तु मानसिक और शारीरिक रूप में हमसे बहुत सबल थे। उनके पास अपने अनुभव जगत को एकाग्र मन से निहारने का अकूत समय था, और प्रकृति दृश्यों को निहारने और सूक्ष्म से सूक्ष्म श्रव्य ध्वनियों को सुनने की अकल्पनीय क्षमता थी। वे सचमुच ऋषि थे, क्रान्तद्रष्टा थे और अपनी इन्हीं क्षमताओं के बल पर उन्होंने सभ्यता की आधारशिला रखी थी।
इस पृष्ठभूमि में ही हम भाषा के आरंभिक चरणों के विकास को समझ सकते हैं।
आपने किसी पत्ती पर पड़ी हुई एक पानी या ओस की बूंद को ढलते हुए या पसीने की बूंद को धीरे-धीरे नीचे खिसकते हुए देखा हो और उस पर ध्यान दिया हो तो आपको लगेगा कि उससे तर या टर जैसी आवाज आ रही है यह ध्वनि डर, ढर, टल, डल, ढल के रुप में भी सुनी जा सकती है । इनमें से किसी रूप में सुनना इस बात पर निर्भर करता है कि आप की भाषा में मूर्धन्य उच्चारण होता है या दंत्य। टल,ल डल, ढल के रूप में सुनना तो उस अवस्था की बात है जब वह भाषा में मूर्धन्य और दंत्य दोनों ध्वनियों का समावेश हो चुका हो जिसका अर्थ है दोनों भाषाभाषी समुदाय एक दूसरे में रच पच गए हों। परंतु हाहाकार भरी ध्वनियों के युग में जीते हुए यह कल्पना नहीं कर सकते कि एक बूंद के स्थान बदलने को बदलने से जो ध्वनि पैदा होती है उसे मनुष्य के कानों से सुना भी जा सकता है। इसके लिए जिस नीरवता की जरूरत है, उसे हमने खो दिया है । परंतु जब हम तर तर पसीना चूने की बात करते हैं तब पहला अर्थ उस ध्वनि का अनुकार होता है और सुनने की क्रिया जाहिर है केवल कल्पित ही की जा सकती है। पर जब पसीने से तर-ब-तर होने की बात करते हैं तब उसकी याद दिलाने पर भी विश्वास न होगा कि इसमें प्रयुक्त तर का किसी ध्वनि से संबंध है, यद्यपि यह स्वत: स्पष्ट हो जाएगा कि तर का अर्थ पानी है। सच यह है कि इन सभी वैकल्पिक रूपों का एक अर्थ पानी है, दूसरा कोई भी द्रव और तीसरा नीचे की ओर का बहाव, सिवाय टर, टल, डर के। इनमें पहले दो का आशय हटना हो गया, और डर जिससे अंग्रेजी के ड्रा का नाता हो सकता है, भारतीय बोलियों में पानी के अभाव और फिर भय को लिए कबसे और कैसे प्रयोग में आने लगा यह तय करना कठिन है। लीजिए, टर और डर के बीच मे आने वाले ठर की ओर तो हमारा ध्यान ही नहीं गया जो पानी के आशय में तो कभी प्रयोग में नहीं आया लगता पर ठरक = चाहत और क्रिया रूप ठरना = पाले की ठंढ।
इस क्रम को समझे बिना हम न तो ताल=जलाशय का अर्थ समझ सकते है, न तल, तले, तलवे, तालु का न ढालना, ढलवां, ढलान और ढीला का, तरना, तारना का आशय समझ में आ भी जाय, यह समझने में कठिनाई होगी कि तलना भी जल/द्रव के इसी समूह का है।
तर का अर्थ जल तो तर्पण का अर्थ पानी पिलाना, सींचना और जलवायु में पानी की आवश्यकता सर्वाधिक हो उस के अभाव में मनुष्य मर भी सकता हूं तो श्रद्धा प्रकट करने के लिए भी पानी पिलाने का अर्थात तर्पण का प्रयोग हो सकता है। वनस्पतियों और पेड़ों का नाम भी जल से ही उत्पन्न हो सकता था, क्योंकि जल आर्द्रता को और ऐसे पदार्थों को भी अपनी परिधि में समेट लेता है । इनसे स्वत: कोई ध्वनि पैदा होती नहीं इसलिए तरु (ट्री) को अपनी यह संज्ञा जल से मिली ।
समस्या वहां खड़ी होगी जब आप यह तय करने लगे की तरी को अपनी संज्ञा इसलिए मिली कि यह तरु से बनी है या इसलिए यह जलधारा को पार कराती है। कहा यह जा सकता है कि नौका वृक्ष से नहीं बनती दारु से बनती है, जिसका प्रयोग देवदारु के एक मात्र विकल्प को छोड़कर काठ के लिए होता है। पर फारसी का दरख्त का दारु से अभेद है ही। तरी का अर्थ तरु निर्मित नहीं है पर दर्वी = काठ की बड़ी कलछी और दर्विका = छोटी कलछी से अवश्य है। तैरना, तरंग, तरसना- पानी की चाह, किसी दुर्लब वस्तु की उत्कट कामना में तर का भूमिका सहज ग्राह्य है।
जल की गतिशीलता के कारण जलवाची शब्दों का ही प्रयोग गति, चलन और रास्ते के लिए भी हुआ है, इसलिए तर से तार की उत्पत्ति हुई हो सकती है। फारसी तरह, तर्ज, तरीका तर
से निकले हो सकते हैं।