मैं शब्द विचार करते हुए जब गलतियां निकालने का आग्रह करता हूं तो इसके पीछे दो उद्देश्य होते हैं। एक यह कि यदि विचार प्रवाह में कोई गलत उदाहरण दे बैठा हूं तो उसकी ओर ध्यान दिलाने पर मैं या तो अपना तर्क पेश करूं, अथवा भूल सुधार कर लूं और दूसरे मित्र जो उसे सही मान चुके हैं वे सही अर्थ ग्रहण कर सकें।
दूसरा यह कि आप को इस विचार-प्रक्रिया में शामिल कर सकूं। जब मैं कहता हूं कि कोश भी भरोसे के नहीं, तो इसलिए नहीं कि मेरा ज्ञान कोशकार से अधिक है, या जिस बात को गलत सिद्ध किया उसके गलत होने का पहले से पता था। उसका आसान तरीका है, उसे कोई अपना और उसके परिणाम कितने आश्चर्यजनक हो सकते हैं, वह स्वयं देख सकता है। आपके पास जितनी शंकाएं हो सकती हैं उनका जवाब बिना भटके मैं नहीं दे सकता, क्योंकि जवाब मेरे पास नही है, उस प्रक्रिया से ही निकलेगा। मुझे केवल उन शब्दों की याद दिलाएं जो उस शृंखला में आते हैं।
आज एक मित्र ने पूछ दिया पार्थ और गुडाकेश का अर्थ। इसी के बहाने मैं उस प्रक्रिया को स्पष्ट कर दूं। पहला चरण कोश देखें, देखें। जितना उस में मिलता है वह संतोषजनक है या नहीं।यदि नहीं है, जो अर्थ मिलता है उसके बाद बाद भी आशंकाएं बनी रह जाती हैं तो सही समाधान के लिए उस शब्द से निकटता रखने वाले शब्दों पर दृष्टि डालें और स्वयं समाधान तलाशें।
मेरे पास संस्कृत के दो कोश हैं। एक मोनियर विलियम्स का।