Post – 2018-04-22

संतापसूचक शब्द और जल (5)

(आज विषय पर आने से पहले यह स्पष्ट कर दूं कि मैं प्राय: ऋग्वेद के ही उद्धरण इसलिए देता हूं कि वह लिखित भाषा का प्राचीनतम दस्तावेज है और वह संस्कृत की तुलना में बोलियों के अधिक निकट पाता हूं। )

क्लेश
क्ल/कल का अर्थ जल है, यह हम पहले देख आए हैं। कृश/क्लिश का उद्भव जल से है इस पर भी हम विचार कर आए हैं। अब क्लेश की अवधारणा के जल से संबंध के विषय में कुछ कहने को नहीं रह जाता। प्रसंगवश, समूह और विराट के अमूर्त पदों के लिए भी जल के पर्यायों में से किसी का सहारा लिया गया है अतः यह सम्भव है कि अंग्रेजी क्लास का भी क्ल से सम्बन्ध हो, और यही बात क्लॉथ, क्ले, क्लेम, के विषय में कही जा सकती है. क्रोश और अं. कर्स की निकटता भी रोचक है.

व्यथा
व्यथा के साथ ही यदि व्याधि की और उसके साथ आधि की याद न आ जाती तो हम यह न सोच पाते कि इसमें वि उपसर्ग है और अब हम इसी बात पर चकित अनुभव करते हैं कि मूल शब्द अथ अव्यय है जिसका अर्थ इससे अब और यहाँ, है जिसका प्रयोग प्रस्थान या इससे आगे, इसके बाद, के आशय में किया जाता है। इसके भी पीछे है. अत जिसका अर्थ है चलना, घूमना, भ्रमण करना। इसके तकार के टकार में बदलने से अट बना है जिसका अर्थ वही है और इसी का संज्ञा रूप अटन है जिससे अटवी -वनस्थली व्युत्पन्न है। अत और अट दोनों में से किसी में पीड़ा या अवसाद का भाव नहीं है। ऋग्वेद में अत का प्रयोग अथ की तरह यहाँ (अत आ याह्यध्वरं नो अच्छा – यहाँ हमारे इस यज्ञ में आओ; अत आ यातमश्विना – अश्विनों यहाँ पधारो ) और अथ का तब (अथा हि वां दिवो नरा पुनः स्तोमो न विशसे – ऐ देवो उसके बाद फिर कभी तुम्हारी कीर्ति कम व होगी ) फिर (अथा को वेद यत आबभूव- फिर कौन जनता है क्या हुआ ). अत/ अद का अवांतर रूप है जिसका अर्जिथ जल है। उसकी गतिशीलता और भ्रामकता अत में बनी हुई है. और इसलिए लगता है इसी के अर्थोत्कर्ष से इस चक्कर में पड़े रहने ने दुःख, थकान और मनोव्यथा का अर्थ ग्रहण कर लिया.

दुःख
दुःख को इसके उपसर्ग दु: से अलग करके क के रूप में रखें और इस बात पर ध्यान दें कि क/क:/को का अर्थ जल होता है और जल पर्यायों से ही ईश्वर के नाम निकले है – इष= जल, >ईश , तो तमिल के गोपुरम और कोइल/ कोविल = मंदिर, इश्वर का घर, समझ में आ जाएगा। अत: दुःख भी जल का आभाव या अनुपलब्धि ही है. इसमें इतना और जोड़ना होगा कि क में आनंद या तृप्तिदायकता का अर्थ निहित है। यह भी याद दिला दें कि नर्क (न्यर्क – जहां जल नहीं या दुर्लभ है) का अर्थ भी वही है जब कि स्वरग सु-अर्क जल से भरपूर है। दुख यदि जल की दुर्लभता है तो सुख जल की सुलभता। ये संकल्पनाएं उस लंबे दुर्भिक्ष काल की देन हैं, जिसकी हम अक्सर याद लिलाते रहते हैं। पहले की सोकल्पनाएं भिन्न थीं।