भावजगत और जल- 2
(हम विवेचन को इसलिए संक्षिप्त रखना चाहते हैं कि अधिक सामग्री होने पर उसे आत्मसात करने में पाठकों कठिनाई हो सकती है। चर्चा लंबी चलेगी और जिनकी इसमें गहरी रुचि है वे ही अपने धैर्य को बनाए रख पाएंगे।)
कामना
कम्- जल,
> कमल- जल का फूल,
> कंपन- कंपकपी- ठंढे पानी में भींगने का परिणाम,
>कंबु- शंख,
>कमंडल, जलपात्र,
>कंबोज- जल से घिरा प्रदेश, ठंडा प्रदेश,
> कामना- 1. *जल की चाह, > २. आकांक्षा,
>काम्य – वांछित,
>कमनीय – सुंदर, जिस की कामना की जाए,
काम – आकांक्षा (कामः तदग्रे समवर्तत …), २. आसक्ति,
>कामदेव – आसक्ति का मानाविकरण ।
> कामिनी / कामुक
कम – अल्प, हीन, >कमी (हम पहले देख आए हैं कि लघुता और विराटता सूचक सभी शब्द
जल के पर्यायों से व्युत्पन्न हैं ।
फारसी – कम – अल्प/ निम्न (कम-अज-कम ) > कमजोर/ कमबख्त/ २. कमीना- नीच
इच्छा
इष् -. सोमलता को कुचलने पर फूटने वाले रस की ध्वनि (हिन्वानो वाचं इष्यसि पवमानविधर्मणि); पतली धार से पानी के निकलने की आवाज,
इष – १. जल, २. सोमरस,
> इच्छा – जल की कामना, आकांक्षा,
> इष्ट- इच्छित, उद्दिष्ट – अभिप्रेत,
> अनिष्ट – हानि,
> इष्टि- वृष्टि की कामना, इस कामना से किया जाने वाला रीतिविधान, यज्ञ, पुत्रेष्टि- पुत्र की कामना, पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाने वाला यज्ञ,
Eng. ease, wish, wishtful,
(अस+इष) अक्षि > ईक्षण – देखना,
Eng. eye, wise, vision
> ईश (नमो देवेभ्यो नम ईश एषां)- स्वामी, ईश्वर,
> ईषत् – तनिक, जरा सा, थोड़ा सा
इश् -ऊपर होना, अधिकार करना, अधीन बनाना (मा नो दुःशंस ईशता विवक्षसे)।
ईशे, (मा व स्तेन ईशत माघशंसः)
ईशते (महः राजान ईशते),
ईशिषे (त्वं ईशिषे वसूनाम् ),
इष्यति (व्रतेष्वपि सोम इष्यते।
ईशते – स्वामी बनता है अपने अधिकार में लेता है
तेजी से बाहर निकलना ( इष्यन् वाचमुपवक्तेव होतुः), तेजी से दौड़ना,
इषु – बाण,
इषुधि- तरकश,
Eng. issue ,निर्गम, वाद विषय,
इष्य – होने वाला, आगे आने वाला, भविष्य सूचक विभक्ति।
क्षमा / क्षान्ति – सहनशीलता, अपकार बदला न लेना,
धातुपाठ में चमु-, छमु-, जमु-, झमु अदने, और क्षमूष् सहने दिया गया है। ऐसी स्थिति में जाहिर है क्षमा और क्षान्ति के व्युत्पादन के लिए एक अलग धातु की कल्पना की गई।
चमु-, छमु-, जमु-, झमु- को खाने तक सीमित रखा गया, हम जानते हैं खाने और पीने में पहले अंतर नहीं किया जाता था और उस सीमा तक मुख विवर से ग्रहण किए जाने वाले सभी पदार्थों के लिए पीने या खाने का प्रयोग होता है । आदमी सिगरेट पीता है । गुस्सा पी जाने की सलाह दी जाती है। इसलिए हम चमु-, छमु-, जमु-, झमु जल के अर्थ में भी ग्रहण कर सकते थे। हम इनके साथ शमु को भी जोड़ सकते थे।
पदान्ते इत् स्यात के तर्क से अन्त्य उकार का लोप होने पर ये सभी एक ही नाद श्रंखला – चं / (चम् / चन्), छं / (छम् / छन्). जं /( जम् / जन्), झं /( झम्, झन्), सं /( सम् / सन्), शं /(शम् / शन्), क्षं/(क्षम्, क्षन्) में आ जाते हैं। अदन से इनका संबंध सीधा हो या न हो, परंतु पानी पीने से इनका संबंध बहुत स्पष्ट है।
पानी का दूसरा गुण शांत करना शमन करना होता है आग को बुझाने या क्रोध को शमित करने का होता ह, वह भी इन से जुड़ा हुआ है। चं, सं, शं परस्पर परिवर्तनीय हैं और शेष ध्वनियां घोषीकरण और महाप्राणीकरण मात्र है, और इन ध्वनियों के प्रति अनुराग रखने वाली बोलियों के कारण है इसलिए अनुनादी आधार पर हमारे लिए कोई समस्या नहीं पैदा करतीं।
चम् का प्रयोग ऋग्वेद में द्रव को उठाने के लिए प्रयुक्त चमू, चम्वी और चमस् और
क्रिया रूप चनस्यति (पुरुभुजा चनस्यतम्),
चन- भी के आशय में अव्ययों के निर्माण में(शूने भूम कदा चन, भवति किं चन प्रियम्, नहि अस्या अपरं चन जरसा मरते पतिः) आदि मैं पाते हैं। हम पहले कह आए हैं कि सर्वनामों, उपसर्गों, अव्ययों और विभक्तियों के निर्माण में जलपरक शब्दों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
सामान्य व्यवहार में
> चंबल,
> चमक,
> चमत्कार,
> चंदन,
> चंद्र,
> चंचल आदि में जल और जल के गुणों से संबंधित प्रयोग देखे जा सकते हैं।
जोरदार बारिश की ध्वनि का अनुकरण छमाछम के रूप में किया जाता है।
> शं का प्रयोग शांति, कल्याणकारी (शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे )
> शमन,
> शंभू,
> शांति आदि में देखा जा सकता है।
इस चर्चा को अधिक विस्तार देकर बोझिल बनाने की अपेक्षा हम इतना ही संकेत करना जरूरी समझते हैं कि अनुनादी ध्वनियों में संस्कृत की तुलना में बोलचाल की भाषाएं अधिक भरोसे की है और इसलिए उनमें पाए जाने वाले उच्चारण को अधिक प्राचीन या मूलभूत मानना होगा। हमारा विचार है कि क्षमा के लिए अलग से एक धातु की कल्पना संस्कृत भाषाविदों को इसलिए करनी पड़ी कि वे अनुमान के आधार पर शब्दों के मूल घटकों की तलाश कर रहे थे, न कि उस नैसर्गिक स्रोत की ओर ध्यान दे रहे थे जिसकी स्पष्ट समझ वैदिक भाषाविदों को थी।