पानी और गणना
आज हम गणित के जलसे उद्भव की संभावना पर चर्चा करेंगे। हम यह बात जानते हैं कि अंको का उंगलियों से गहरा संबंध है परंतु यह नहीं जानते कि उंगलियों का संबंध पानी से भी हो सकता है। इस ओर मेरा ध्यान से कुछ विलंब से गया । बार बार ऋग्वेद पर सायणाचार्य के भाष्य को उलटते पलटते । फिर कुछ और टटोलने के बाद मैंने पाया कि क्षुद्रतम अंशों, जैसे अणु, कण, रेणु, पुद्गल, अंश, खंड, भाग, क्षुद्र के लिए जो शब्द प्रयोग में आते है वे भी सीधे या टेढ़े जलवाची शब्दों से जुड़ते है, अंक, संख्या, कलन, गणित, भाग, धन, ऋण, गुणन आदि भी, और विराटतम संख्याओं और विपुलता सूचक बहुवचन , बहु. विपुल, अति,अधिक, महत, पूर्ण, भूरि, अलं, बाढ, अपार, पृथुल, अपार,अकूत,,भारी, वृहत, संहति, आदि भी।
इस रहस्य को कोशग्रन्थों के सहारे नहीं समझा जा सकता। संस्कृत व्याकरण भी हमारी अधिक सहायता नहीं कर सकता, जिसमें संज्ञाओं के ही तद्धित और कृदन्त भेद किए गए हैं। कृदन्त वे शब्द है जिनको धातुज माना गया है। उनकी व्युत्पत्ति भी, जैसा हम पीछे देख आए हैं, हर माने में सन्देह से परे नहीं है। परन्तु ऐसी संज्ञाएं जिनको किसी धातु से नहीं संबद्ध किया जा सका, जिन्हें तद्धित कहा जाता है, उनकी व्युत्पत्तियां इतनी हास्यास्पद हो सकती है कि इन पर संस्कृत के पंडित ही अपनी हंसी रोक सकते हैं। इसका एक नमूना पुत्र शब्द है। ‘पुत्र’ की व्याख्या है, ‘पुं नाम इति नरक: तस्मात् त्रायते इति पुत्र: (पुन्नाम्नो नरकाद्यस्मात्त्रायते पितरं सुत:। तस्मात् पुत्र इति प्रोक्त: स्वयमेव स्वयंभुवा।) आप्टे इस व्याख्या से ही सन्तुष्ट नहीं हैं, आगे सुझाव देते हैं कि इस कारण इस शब्द को ‘पुत्त्र’ के रूप में ही खिखा जाना चाहिए लेकिन लोग हैं कि नरक की ऐसी तैसी करते हुए इसे पुत्र रूप में ही लिखते हैं और स्वयं आप्टे ने भी अपने कोश में ‘पुत्र:’ शीर्षक के अन्तर्गत ही अपने उक्त विचार प्रकट किए हैं।
कृत्रिम व्याख्याओं में इस तरह का संकट बना रहेगा ही। अनुनादी पद्धति में इस तरह के कृदन्त तद्धित का भेद नहीं रह जाता। उसमेँ एक आवयिकता है, जिसमें क्रिया, विशेषण और क्रियाविशेषण तक उसी ध्वनि की तार्किक शृंखला में जुड़े चले आते हैं।
परन्तु हमेँ उस सिद्धान्त का स्मरण दिलाना होगा कि जल की विविध गतियों के कारण गति के विविध रूपों जिनमें प्रखर से लेकर मंथर, ऋजु से लेकर वंकिम और चक्करदार, ऊर्ध्वाधर से लेकर क्षैतिज से ही सभी गतियों, रीतियों, प्रथाओं के लिए शब्द निकले हैं जो उपसर्गों का भी काम करते हैं। जल के ही पर्याय लगभग सभी खाद्य पदार्थो, सभी अनाजों, सभी वनस्पतियों, सभी रंगों, ज्ञान, प्रकाश, इनके साधन, चांद-सूरज सहित ब्रहमांड के सभी दृश्य पिंडों, सभी मनोभावो-विचारों, सभी खनिजों-धातुओं, धन संपत्ति के रूपों के साथ मिलते हैं और आगे चलकर मानवीय हस्तक्षेप से भाषा के विस्तार का दौर आता है जिसके लिए ये इकाइयों या आधारभूत घटकों का काम करते हैं।
इस दावे की परीक्षा हम आगे की चर्चाओं में करेंगे परन्तु यहां इनको एक साथ गिनाने का प्रयोजन यह है कि किसी विशेष आशय में रूढ़ हो जाने के कारण और अपने मूल अर्थ में प्रयोगच्युत हो जाने के कारण, कुछ मामलों में हम शब्द का सीधा संबंध जल से न जोड़ सकें। उस अवस्था में में हम ‘मान्य अर्थ’ या assumed sense के लिए ‘*’ चिन्ह लगाकर, यह परखने का प्रयत्न करेंगे कि ऊपर के एकाधिक आशयों में उसका प्रयोग हुआ है या नहीं। यदि हां, तो मान्यता प्रामाणिक हो जाएगी।
एक अन्य तथ्य यह कि अनुनादी उच्चारण में ह्रस्व, दीर्घ और नासिक्य का अधिक ध्यान नहीं रहता, अत: इनका अभेद बना रहेगा। तुलनात्मक साक्ष्य में ईरानी और यूरोपीय बोलियों में (हमारी सीमा में अंग्रेजी और अधिक से अधिक कोश की सहायता से लातिन और ग्रीक) स्वरों और व्यंजनों के जो सर्वमान्य परिवर्तन हैं उनका लाभ लेना स्वाभाविक है और यदि हम व्युत्पादन के संस्कृत पद्धति की चिन्ता नहीं करने जा रहे हैं तो इससे प्रेरित पश्चिमी व्युत्पादन का बंधन भी नहीं स्वाकार करेंगे, जो यूं भी सजात शब्दों के उल्लेख से आगे नहीं बढ़ पाया है। प्रोटो इंडोयूरोपियन के जो स्टेम कल्पित किए गए हैं, उनमें यूरोपीय बोलियो को अतिरिक्त प्रधानता देते हुए धातुओं के निर्धारण की ही नकल की गई है, इसलिए उनमें धातुओं वाले दोष तो हैं ही, उसके बाद भी उनकी जो सीमित उपयोगिता है वह यूरोपीय भाषाओं तक सीमित है। उस रूप में भी उन्हें आप्तता नहीं मिली है अत: मानक कोशों में उन्हे स्थान नहीं दिया गया है। हमारी तो सीमा यह भी है कि मेरे पास वैसा कोई कोश नहीं। अत: उनकी व्याख्या हमारे लिए बन्धनकारी नहीं है। इसके बाद भी कुछ गंभीर चूकें मेरी अपनी सीमाओं और विचार के समय बहाव के कारण हो सकती हैं जिनका प्रतिशत तो तय नहीं किया जा सकता पर संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
अब हम अगली कुछ पोस्टों में गणित के क्षेत्र में प्रयुक्त शब्दों पर विचार करेंगे।