आतंकित और असुरक्षित अनुभव करने का अधिकार
सुनते हैं आसिफा उस बकरवाल की लड़की है लड़की थी जिसने सबसे पहले सियाचिन पर पाकिस्तानियों की गतिविधि की सूचना भारतीय सैनिकों को दी थी. यह गलत भी हो सकता है. सुना है वह पिता भी CBI इंक्वायरी चाहता है। भी गलत हो सकता है। सुना है वह भी इस केस की सुनवाई जम्मू कश्मीर से बाहर कहीं चाहता है। यह भी किसी का गढा हुआ बयान हो सकता है। सुनते हैं आंदोलन करने वाले वकील भी सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, जिसकी मांग जिन्हें अभियुक्त बनाया गया है, वे कर रहे थे. हो सकता है ऐसा करना भी अभियुक्तों का समर्थन करना हो। सुना है असहायता वे नारको टेस्ट कराने की मांग कर रहे हैं। हो सकता है, यह न्याय प्रक्रिया में बाधा डालने का उन का तरीका हो।
सामान्यतः किसी जांच प्रक्रिया में कोई भी जांचकर्ता एक साथ अनेक संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपनी जांच आरंभ करता है क्योंकि उनके संदर्भ में कुछ प्रमाण होते हैं। जिनके सबसे शशक्त प्रमाण होते हैं उनको वह पहले जांचता है और आगे बढ़ने पर उसके खंडित होने पर वह उसको छोड़कर दूसरी संभावनाओं पर ध्यान देता है। यह भी संभव है कि वह सभी संभावनाओं को एक साथ टटोलना आरंभ करें परंतु साक्ष्य या बयान में किसी एक कड़ी के अनमेल होने पर पूरी जांच की दिशा बदल जाती है। इस मामले में मैंने हर कड़ी को असंभव पाया।
हो सकता है मेरे सोचने का देखने का तरीका गलत हो। हो सकता है, जम्मू कश्मीर सरकार अभियुक्तों को सिद्धदोष ठहराने और जल्दी से जल्दी फांसी देने को उचित न्याय मानती हो। हमारे बहुत से मित्र जो मुझसे कम संवेदनशील नहीं हैं, चाहते हैं कि जल्द से जल्द अभियुक्तों को फांसी दे कर न्याय की माग को पूरा कर दिया जाए। किसी भी कारण से किसी तरह की देरी उन्हें सहन नहीं है।
हो सकता है, मैं अपनी चिंता प्रकट करके स्वयं अपराधियों का साथ दे रहा हूं। परंतु इन सारी और पहले से तय सच्चाईयों के बीच मुझे असुरक्षित अनुभव करने का अधिकार तो है ही। मैं स्वयं अपने को ऐसी स्थिति में रख कर देखता हूं तो प्रचार तंत्र और शासन तंत्र की शक्ति के साथ बुद्धिजीवियों गठजोड़ के सामने अपने को यह सोच कर कितना असहाय पाता हूं कि मेरी उम्र ज्ञान स्वभाव सभी के बावजूद इन्हीं की दुहाई देते हुए घृणा को और उग्र करते मेरे ऊपर ऐसा प्रहार हो सकता है और मैं निर्दोष होते हुए भी अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सकता।
वास्तविक अपराधियों को छिपाने बचाने और बलि के लिए किसी को भी चुन कर फांसी पर चढ़ा देने का यह न्याय मुझे आतंकित करता है। मेैरे मित्र कहते हैं, आतंकित और असुरक्षित अनुभव करने का अधिकार भी केवल उन्हें है, मुझे नहीं है।