Post – 2018-02-20

ऋत्विज

इससे पहले कि हम पुरुष सूक्त की व्याख्या करें, कुछ संकल्पनाओं के विषय में स्पष्ट हो लेना इसलिए जरूरी है कि मैं लाख समझाऊं कि यज्ञ कृषिकर्म है, कर्मकांडी यज्ञ का हौवा चेतना में इस तरह घुसाया गया है कि तर्क से जो लोग इसके कायल हो जाएंगे उनके भी गले यह बात नहीं उतरेगी। कर्म, तप, व्रत, क्रतु, श्रम, यत्न सभी का अर्थ बदल दिया गया।
आप जानना चाहेंगे ऐसा क्यों किया गया? किया इसलिए गया कि भूसंपदा पर अधिकार हो जाने के बाद खेती का सारा काम तो शूद्र करने लगे थे। कर्म यदि श्रम कार्य हो, तो श्रमकार्य से विरत और सामाजिक प्रतिष्ठा में ऊपर माने जाने वाले दोनों वर्णों की हैसियत घट कर सबसे नीचे आ जाएगी, क्योंकि देवयुग (कृषि के आरंभिक चरण) में असुरों को अकर्मा, अव्रत, आदि कह कर उनकी निन्दा की जाती थी – अकर्मा दस्युः अभि नो अमन्तुः अन्यव्रतः अमानुषः । यदि यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म है और यज्ञ उत्पादन है, तो उत्पादन के सारे काम तो शूद्र कर रहे हैं, अन्न उत्पादन से ले कर अन्य सभी वस्तुओं का उत्पादन। जरूरी नहीं है, पर यह संभव है कि आधुनिक अवस्था के वास्तविक यजमान या यज्ञ करने वाले इस परिभाषा से शूद्र हो गए, और यह एक कारण रहा हो शूद्रों के प्रति नि ष्ठुर वयवस्था का। ध्यान रहे कि यह स्थिति ऋग्वेद के समय तक आ चुकी थी। पर ऋग्वेद के ही अन्तःपाठ से वे सचाइयां भी सामने आती हैं जो आरंभिक अवस्था में थीं। इन्हीं में से एक है ऋतु का ध्यानः
इन्द्र सोमं पिब ऋतुना
ऋतुना यज्ञमाशाथे
अश्विना … ऋतुना यज्ञवाहसा
विश्वे देवा ऋतावृध ऋतुभिर् हवनश्रुतः
अग्ने यज्ञं नय ऋतुथा
नि षीद होत्रं ऋतुथा यजस्व
यज्ञ निष्पादकों में एक है ऋत्विज – ऋतु में यज्ञ करने वाला । कई बार अग्नि को ही ऋत्विज मन्द्रं होतारं ऋत्विजं चित्रभानुं विभावसुम् – कहा गया है।

ऋतु पर इतना बल इसलिए कि कृषि के आरंभिक कटु अनुभवों की कहानियां प्राचीन ग्रन्थों में दर्ज हैं। इन्हीं में से एक है, देवों से ऋतुएं रूठ गईं। अब नतीजा यह हुआ कि प्राकृतिक उत्पाद पर निर्भर करने वाले मजे में वन्य अनाज बटोर रहे थे और देवों की फसल ही बर्वाद हो गई। बहुत से देव विचलित हो कर असुर जीवनशैली की ओर लौट गए। देव ऋतुओं के पास गए। नाराजी का कारण पूछा। ऋतुओं ने कहा, यज्ञ में हमारा भी हिस्सा होना चाहिए। देव मानते नहीं तो क्या करते। पर क्या आप मानेंगे कि ऋतु और मुहूर्त की हमारी चिन्ता के मूल में भी कृषि का हाथ है और यज्ञ कृषिकर्म ही है। ठीक समय से बोआई न हुई तो सारी मेहनत अकारथ। पर यही कालगणन का भी कारण बना जिसका विकास ज्योतिर्विज्ञान में हुआ।