आत्मवंचना के रूप
हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जो बहुतों की नजर में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे बाहर निकलने के जो तरीके अपनाये जा रहे हैं वे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। विचार का स्थान घबराहट ने ले लिया है। बहस गालियों के आदान प्रदान का रूप ले चुकी है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर की जिन्हें चिन्ता है उनका हाल यह कि वे अपनी बद्धमूल धारणाओं से असहमति को सहन नहीं कर पाते। वे उसका दमन करने के लिए उनके पास जो सबसे कठोर तरीका अपनाते और गर्हित भाषा का प्रयोग करते हैं। एसे लोगों को क्या जिसके पास राजशक्ति है, वह अपने से असहमत लोगों के विरुद्ध दंडात्मक तरीका अपनाए तो उसे अनुचित कहने का नेतिक अधिकार अधिकार उनके पास है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग संयत भाषा और तार्किक रूप में ही की जा सकती है।
२. भारतीय जनता पार्टी का शासन निर्दोष नहीं है, यह पिछले शासनों से कम दोषपूर्ण है। कोई भी शासन निर्दोष नहीं होता। इसके जिन दोषों को गिनाया जाता है वे इसे उत्तराधिकार में मिले हैं। भ्रष्टाचार
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