Post – 2018-01-09

बौद्धिक लकड़बग्घे

हिन्दी क्षेत्र अपने बुद्धजीवी की प्रतीक्षा में है। जो लोग कुछ कविताएं, कहानियां, लेख आदि लिख कर अपने को बुद्धिजीवी मान लेते हैं, वे बौद्धक लकड़बग्घे हैं। बौद्धिकता एक साधना है जो कठिन श्रम, लगन और अभ्यास से आती है, विट और प्रतिभा से नहीं। जब किसी विषय में मन इस तरह लीन हो कि लगे इसके बिना जीवन व्यर्थ है, तब पैदा होता है वह लगाव और जब उसमें ऐसी दक्षता आ जाय कि विश्व की सभी समस्यायें उसी से अर्जित दृष्टि से आलोकित हो जायं, तब आता है वह अधिकार जिसके बाद आप दिशा दिखा सकते हैं, देष्टा बन सकते हैं। पता करें भिक्षापात्र लिए घूम कर बटोरने और उसे कीर्तिकौड़ी के भाव बेचने वालों से कि तू जिसे देकर कीरत बटोर रहा है उसका कौन सा दाना तेरा उपजाया हुआ है तो उससे या तो बोलते न बनेगा, या कहेगा उपजाया भले न हो इसकी थैलियां तो बदलता ही रहा हूं, यह भी कोई छोटा काम तो नहीं।

यही है आपके बुद्धिजीवी का कद और कमाल। उसके किए विश्व ज्ञानसंपदा में एक दाने की भी वृद्धि नहीं हुई। जिसने की उसे समझने की उसमें योग्यता तक पैदा न हुई अन्यथा रामविलास शर्मा का सम्मान तो उसने किया ही होता। बौद्धिक लकड़बग्घे बौद्धिकों को दबोचने का काम अवश्य करते हैं।

यह मैं पसन्द बटोरने के लिए नहीं लिख रहा , लिख इस आशा में रहा हूं कि आप में से कुछ में तो ज्ञानसाधना का वह संकल्प पैदा हो कि आप कुछ पैदा कर सकें, याचक बन कर झोली भरने और थैलियां बदलने के करतब पर किर्तिकौड़ियों के दाता की प्रतीक्षा करने की जगह समग्र ज्ञानजगत को कुछ दे सकें।।