Post – 2017-12-27

व्यर्थताबोध
‘men make their own history, and what they can know is what they have made.’

अकेला योद्धा अपना शौर्य दिखा सकता है, समर नहीं जीत सकता। शौर्य प्रदर्शन (अनन्य सिद्ध होने की कामना) मनुष्य को उसकी हैसियत से छोटा बनाता है। कोई महान उद्देश्य निजी नहीं हो सकता, सामाजिक होना उसकी अनिवार्य शर्त है। कोई भी महान उद्देश्य मानवद्रोही नहीं हो सकता। उससे विनम्र और समर्पित भाव से ही जुड़ा जा सकता है और उसकी सिद्धि से बड़ी कोई उपलब्धि नहीं और उसकी कीमत पर कोई भी सिद्धि तुच्छ है। एक लेखक यदि योद्धा नहीं है तो लेखक नहीं वाग्विलासी है। पर उसका मैदान मानव चेतना है और हथियार कलम। वह अपने लेखन से अपने पाठकों की सोच में कितना बदलाव ला सका है यही उसकी सार्थकता का पैमाना हो सकता है।
आज से पचास साल पहले परिस्थितिवश औपनिवेशिक मानसिकता के विरुद्ध मोर्चा संभाला था और प्रतिश्रुति के रूप में वह कविता लिखी थी जो मेरी प्रेरणा का स्रोत रही है जिसकी पंक्तियां थीः
तुम देखना
बेकार नहीं जाएगी मेरी फुसफुसाहट
नही, तोड़ूंगा कुछ नहीं
सिर्फ परिभाषा बदल दूंगा
और आसमान में तने कंगूरे हवामुर्ग में बदल जाएंगे
सच है फुसफुसाहट व्यर्थ न गई, पर क्या यह चेतना तक जगा पाया कि हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलना होगा? क्या यह तक समझा पाया कि कम्युनिज्म के नाम पर, सेकुलरिज्म के नाम पर, राष्ट्रवाद के नाम पर सारी गुत्थमगुत्थ औपनिवेशिक खेल का हिस्सा है। औपनिवेशिक सोच के विरुद्ध मेरी पहली पुस्तक 1973 में आई थी, एडवर्ड सईद की पुस्तक ओरिएंटलिज्म 1978 में। कुछ विलंब से ही सही, इस पुस्तक की तो धूम इस देश में भी मची थी । मात्र ज्ञानयज्ञ के लिए! क्या इन इबारतों का असर चेतना पर भी पड़ा?
Taking the late eighteenth century as the starting point Orientalism can be discussed and analyzed as the corporate institutions for dealing with the orient – dealing with it by making statements about it, authorizing views of it, describing it, ruling over it: in short, Orientalism as a Western style for dominating, restructuring and having authority over it. … European culture was able to manage – and even produce – the Orient politically, sociologically, militarily, ideologically, scientifically, and imaginatively during the post-Enlightenment period.

ये पंक्तियां पूर्व के विषय में पश्चिम के लेखकों द्वारा लिखे गए और लिखे जा रहे समस्त लेखन के विषय में सही है।
A second qualification is that ideas, cultures, and histories cannot seriously be understood or studied without their force, or more precisely their configurations of power, also being studied. 5
कोई दूसरा आप के लिए आप का काम नहीं करता। बुद्धिजीवियों को राजनीतिज्ञों का काम छोड़कर अपना काम करना चाहिए, यह सीधी बात तक समझा पाना कितना कठिन है।