जाली भाषा, जाली इतिहास, जाली भाषाशास्त्र
हमें मार्क्सवादी इतिहासकारों से यह शिकायत नहीं है कि इतिहास को समझने में गलती की। गलती तो वर्तमान परिघटनाओं को समझने में भी सभी से होती है इसलिए हमारी स्वतंत्रता में गलती करने की स्वतंत्रता भी आती है जिससे गुलाम वंचित कर दिए जाते हैं। शिकायत यह है कि उन्होंने मार्क्सवादी इतिहास न लिखकर अप्रामाणिक, भाववादी, हिन्दूद्रोही और सांप्रदायिक इतिहास लिखा और सांप्रदायिकता को कुपरिभाषित करते हुए बताया कि अल्पसंख्यक की सांप्रदायिकता सांप्रदायिकता नहीं होती, सेकुलरिज्म होती है और इस तरह एक ओर मुस्लिम अपतोषवाद (जिसमें कट्टरपंथियों की पश्चगामी मांगें मानते हुए समाज को पीछे ले जाये जाता है) को बढ़वा दिया गया, दूसरी ओर मृतप्राय हिंदू संप्रदायवाद को संजीवनी प्रदान की गई।
परन्तु हम उस जालसाजी की बात करना चाहते थे जिससे यूरोपीय विद्वानों ने एक नया पुराण अपने घाव भरने के लिए गढ़ कर तैयार किया, हमें इतिहास के नाम पढ़ाते रहे और जिसे हमारे वे अध्येता भी सही मानते रहे जिन्हें तथाकथित मार्क्सवादी राष्ट्रवादी कह कर खारिज करते रहे, जब कि यह खेल इतना खुला हुआ था कि तथ्यों को बिना किसी व्याख्या के तरतीब से रख दिया जाय तो सचाई उजागर हो जाय। मैं अपनी ज्ञानसीमा में वही करना चाहता हूं।
जोंस ने तो अपने प्रस्ताव में ब्राह्मणों के ईरान से भारत चले आने, तातारों के अपने क्षेत्र में और यूनानियों के ग्रीस पहुंचने की बात की थी। उसमें किसी आक्रमण की कल्पना न थी, न ही जैफेट की संतानों के अतिरिक्त किसी अन्य के द्वारा आबाद मान सकते थे। इसलिए भारत का जो पुराना भूगोल उनकी कल्पना में था उस में बृहत्तर भारत से भी अधिक कुछ आता था
India then, on its most enlarged scale, in which the ancients appear to have understood it, comprises an area of near forty degrees on each side including a space almost as large as all Europe; being divided on the west from Persiaa by the Arachosian mountains, limited on the east by the Chinese part of the Peninsula, confined on the north by the wild Tartary, and extending to the south as far as the isles of Java. This trapezium, therefore , comprehends the stupendous hills of Potyid or Tibet, the beautiful valley of Kashmir, all the domains of Indoscythians, the countires of Nepal and Bhtan, Camrup or Asam, together with Siam, Ava, Racan, and the bordering kingdoms, as far as China of the Hindus or Sin of the Arabian geogrphers; not to mention the whole western peninsula with the celebrated Sinhala, or lion-like men, at the southern extremity. By India in short, I mean the whole extent of country, in which the primitive languages of the Hindus prevail at this day with more or less of their ancient purity, and in which the Nagari letters are still used with more or less deviation from their original form.
परन्तु यह स्पष्ट होने पर कि संस्कृत कभी ईरान की भाषा नहीं रही हो सकती, कोलब्रुक ने यह कयास लगाया कि वह लुप्त भाषा जिससे संस्कृत, ईरानी, ग्रीक आदि की उत्पत्ति हुई भारत से लेकर उस समूचे भूभाग में बोली जाती थी, और कालान्तर में उसी का रूपान्तर होने से ये भाषाएं अस्तित्व में आईं:
The Sanscrit evidently draws its origin from a primeval tongue, which was gradually refined in various climates, and became Sanscrit in India, Pahlavi in Persia, and Greek on the shores of Mediterranean …It is now become almost a dead language; but there seems no reason for doubting that it was once universally spoken in India.” (On the Sanscrit and Prakrit languages, Asiatic Researches , VII, 201).
पर यह सुझाव भी किसी को जंच नहीं रहा था। कारण संस्कृत की समृद्धि का यह हाल कि ग्रीक, लातिन आदि में जहां आपस में भिन्नता पाई जाती थी वहां भी संस्कृत में उन दोनें के समरूप मिल जाते थे। उनमें से प्रत्येक का सीधा संबंध संस्कृत से दिखाई देता था। एक बात और, अभी तक आर्य नाम की किसी जमात की बात किसी को नहीं सूझी थी।
अब तक के सुझावों में काम का सूत्र एक ही निकला था कि संस्कृत को भारत से बाहर किसी भी जगह की भाषा सिद्ध किया जाय पर भारत की नहीं। यह सिद्ध किया जाय कि वे कहीं अन्यत्र से भारत में आए थे। कहां से, यह बाद में तय होता रहेगा। उसे x. मान लें। इसके बिना जातीय अपमान से बचा नहीं जा सकता था इसलिए किसी ने इस पर सोच विचार की जरूरत न समझी।
आए कैसे होंगे, इस पर विचार करना था। एक तरीका था हमला किया और जीत लिया । पर अभी तक यह केवल ब्राहमणों का हमला था। प्रमाण कोई नहीं, सब कुछ अंटकलबाजी या कहें शतरंज का बाजी की तरह चल रहा है। गोट इस तरह आगे बढ़नी है कि हार का मुंह न देखना पड़े। ब्राहमणों के आक्रमण और विजय की बात गले उतर नहीं रही थी:
“It is improbable hypothesis, that the Bramins entered India as conquerors, bringing with them their language, religion and civil institutions. “ Bantley
अब क्या किया जाय ? अब दर्शन वर्सन के बोझ को हटा कर एक ऐसे जत्थे की जरूरत पड़ी जो दुर्दान्त हो, क्रूर हो, असभ्य हो और अब ऋवेद से उछल कर वह बाहर आ गया, वीर। यह समाज अपने को वीर कहता था इसलिए मूलत: वीरा: (viros) रहा होगा। पर ज्ञान मुसीबतें पैदा करता है, जानकारी कुछ और बढ़ी तो पता चला ऋग्वेद में वीर का अर्थ पुत्र, प्रजा और नौकर-चाकर (सहायक) है।
अब नई संज्ञा की तलाश हुई और आर्य हाथ लग गया । मुसीबत यहां भी, आर्य का अर्थ तो सभ्य, श्रेष्ठ, आदि होता है। विचलन तो हुई पर दबाव आया, भारत पर हमला कराना है या नहीं? यदि कराना है तो वीरों के जिन दुर्गुणों को गुण बता कर उन्हे भारत विजेता बनाना चाहा था उन्हें आर्यों पर लाद दो। सभ्यता स्थगित रह सकती है, पर आक्रमण नहीं। और इस तरह शुरू हुआ आर्य आक्रमण का गल्प। ब्राह्मण ? नहीं। वीर? नहीं। आर्य? नहीं। कोई और चारा नहीं, इसलिए चलाना तो इसी को होगा। इस तरह पैदा हुआ आर्य आक्रमण का ‘सिद्धान्त’।
पर अपनी जल्दबाजी में हम बहक कर उस काल रेखा को लांघ गए जिसमें संस्कृत के वर्चस्व से निबटने के तरीके तलाश किए जा रहे थे। एक उपाय था संस्कृत की श्रेष्ठता को कम करना, दूसरा संस्कृत को जड़ मूल से उखाड़ फेंकना। पहला प्रयत्न जारी रहा और इसे तुलनात्मक भाषाविज्ञान कहते हैं और दूसरा हास्यास्पद बताया जाता रहा पर वह तुलनात्मक भाषाविज्ञान के उन्नायकों से अधिक तार्किक और वस्तुवादी लगते है। ऐसे लोगों पर आज बात करना शायद उचित न हो। हां यह बताया जा सकता है कि इसके शीर्ष पुरुष का नाम डूग्लस स्टीवर्ड है और उसके प्रति मेरे मन में उसका उपहास करने वालों से अधिक सम्मान है।वह गलत था, हास्यास्पद न था। उसकी तुलना में तुलनातमक भाषाविज्ञान के उन्नायक अधिक हास्यास्पद सिद्ध होते हैं, पर हम आज उसकी बात करें तो भी वह समझ में नहीं आएगा। इसे कल पर छोड़ते हैं