क्या हम कर रहे हैं
और क्या चाहते हैं।
मैं आज भी अपनी पोस्ट पूरी नहीं कर पाऊंगा इसलिए आज जो इधर उधर नजर आया उस पर मेरे मन में जो चिंता उभरी उसे साझा करना चाहता हूं। मेरी चिंता शीर्षक में व्यक्त है।
ऊल जलूल बकने वालों से निपटने के लिए तो उनके स्तर पर आना पड़ता है, जिससे बचने के लिए हारना भी जीत और जीतना भी हार है।
समाज को राह दिखाने का गुरु भार वहन करने वाले ज्ञानजीवी इस बात का ध्यान न रखें कि वे जो कह या कर रहे हैं उससे किन प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलेगा और वे देश, समाज, या विश्व मानवता के लिए हितकर हैं या नहीं तो क्षोभ होता है।
आज दो टिप्पणियों पर प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।
एक, एक जघन्य और निन्दनीय, फिर भी मानवीय अंत:प्रकृति और गौरव परंरा की अति संवेदनशीलता के प्रभाव से जुड़ी विकृति है। दुर्भाग्य की बात है कि किसी व्यक्तिगत विश्वासघात के कारण ऐसी उग्रता मिली हो कि क्रोधविक्षिप्त व्यक्ति अपराध करते उसके सबूत पेश करते हुए कहता है मुझे फांसी दे दो, पर मैं इसे सहन न कर सका, न कर सकता हूं, न किसी को करना चाहिए। उसके या उसके परिवार को किस आजिजी से गुजरना पड़ा था उसका हम अनुमान नहीं कर सकते।
आहत दर्प, प्रेम या विश्वासघात या निजी असंतुष्टि के कारण पत्नी द्वारा पति को मारने, काट कर टुकड़े करने, या पति द्वारा वैसा ही जघन्य कृत्य करने के समाचार हंफ्ते पखवारे पढ़ने को मिलते रहते हैं । फिर इस एक व्यक्ति के गर्हित कार्य को सांप्रदायिक रंगत दे कर किस मनोवृत्ति के विस्तार में आप सहयोग कर रहे है?
यदि कर ही रहे हैं तो इसका लाभ क्या आप को मिलेगा? यह किसी योजना का अंग न था, पर जब विपरीत स्थितियों में फतवे दे कर या सांप्रदायिक अनुमोदन की प्रतीक चुप्पी ऐसे ही जुनूनी कामों पर साधी गई उसका लाभ किसे मिला होगा या मिल रहा है। आप की उस चुप्पी को मैं सही मानता हूं , पर तत्समय चुप्पी के बाद भी आज की वाचालता को सबके लिए अनिष्टकर पाता हूं। ये गंभीर मसले हैं। इन पर बहस होनी चाहिेए। संभव है मैं गलत होऊं। उसकी प्रतीक्षा की जा सकती है।
दूसरा प्रश्न कच्छे की पवित्रता से जुड़ा है। अब तक इस कसौटी पर महिलाओं की परख होती थी। इससे मुक्ति का संघर्ष महिलाएं कर रही थीं, विदुषी महिलाएं तय करें कि इसे चरित्र की कसौटी बनाया जाना चाहिए या नहीं। मैं न मार्क्स को इस पर खरा पाता हूं न गांधी को न नेहरू को, न इन्दिरा जी को , न वाजपेयी को , न असंख्य दूसरे लोगों को, जिनका मै सम्मान करता हूं, न स्वयं इस कसौटी का सामना कर सकता हूं।