Post – 2017-12-07

जब साहित्यकार एक स्वर से मोदी के नेतृत्व में भाजपा की जीत से आतंकित हो कर मातम मना रहे थे, मैं उनका उपहास कर रहा था। जब पुरस्कार वापसी का हंगामा किया गया तो मैंने, इसे मूर्खतापूर्ण कदम मानते हुए इसे बन्द करने का सुझाव यह कहते हुए दिया था कि इससे सरकार का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, एक संस्था की कीर्ति नष्ट होगी। आन्दोलन करने वाले थकान और व्यर्थताबोध के शिकार होंगे और उनकी हैसियत पहले से घट जाएगी।
अब जब सुना सरकार ने अशोक वाजपेयी पर सीबीआई जांच आरंभ की है, निवेदन करता हूं कि इससे अशोक वाजपेयी का उतना नुकसान नहीं होगा जितना सरकार की साख का। अशोक वाजपेयी में दूसरी अनेक कमियां हो सकती हैं पर मेरा विश्वास है, वह आर्थिक हेराफेरी नहीं कर सकते। आज से १६ -१७ साल पहले एक अखबार ने उन पर कुलपति के पद पर रहते करोड़ों के घोटाले का आरोप लगाया था। पत्रकार ने मुझसे फोन पर पूछा उस रपट पर क्या राय है? मैने कहा, ‘मैं वह अकबार नहीं मंगाता। कल देख कर अपनी राय दूंगा।’ उसने मेरी प्रतिक्रिया देते हुए प्रकाशित किया कि मैं उसकी खोज का समर्थन कर रहा था। मैंने संपादक से इसकी शिकायत की और अपेक्षा की कि वह इसे प्रकाशित करते हुए खेद प्रकट करें। उन्होंने ऐसा नहीं किया। उसके बाद से मंगलेश डबराल मेरी निगाहों में गिर गए। वह मेरे सामने पड़ने पर झेंप जाते हैं। मैने कभी अशोक वाजपेयी को सफाई देना जरूरी नहीं समझा। उसके बाद भी हमारे संबंध सामान्य रहे। मैं जिन कसौटियों पर व्यक्ति को परखता हूं वे बहुत सीधी होती हैं। यदि अशोक वाजपेयी ने किसी तरह की हेराफेरी की होती तो या यदि उनको मेरे व्यवहार में कोई दुर्भाव झलका होता तो हमारे व्यहार सामान्य नहीं रहते।पुरस्कार वापसी की कटु आलोचना के बाद भी हमारे व्यवहार में कोई तिक्तता नहीं है। वर्तमान सरकार यदि असहमति और विरोध का सम्मान न भी कर पाए उपेक्षा करने की नीति अपनाए तो मेरे मन में इसके प्रति आदर बना रहेगा ।