Post – 2017-11-30

प्रेमचंद ग्रंथि
प्रेमचंद कहते थे जिस दिन मजदूर काम नहीं करता उसे खाना नहीं मिलता और इसलिए जिस दिन वह न लिख पाते उस दिन खाने का अधिकार नही मानते थे। हो सकता है इसी का असर हो, सोचता हूँ जिस दिन की पोस्ट पूरा नहीं कर पाया वह दिन बेकार गया! हार कर सोचता हूँ, चलो एक शेर का ही सामना हो जाए. और लो जहां एक पिंजड़े से बाहर आया की एक पर एक. लाइन लग जाती है. इन्हें मैं नहीं लिखता, बस दर्ज करता हूँ . ये शेर पलते कहां हैं? क्या औरकेो के साथ भी यही होता है?