Post – 2017-11-22

मैने भी अांख मूंद कर देखा
क्या कोई सुबह किसी ख्वाब में है।।
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जो बिखरा घर था उसको फिर से जोड़ा है पसीने से
इसे आबाद होने दो, इसे आबाद रहने दो ।।
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कई रंगों के अंधेरे हैं तेरी महफिल में
कई ख्वाबों को मिलाकर तेरी पौ फटती है।
ऐ मेरी जान कभी ओस कभी आग है तू
तेरे काजल की सियाही ये पौ फटती है।।
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कुछ लोग हैं जो हंस कर टाल देते हैं हर बात
कुछ लोग हैं हंसना भी गवारा नहीं करते।।
तुम पर फिदा हुए तो बात अक्ल में आई
किस्मत से बचे, ऐसा दुबारा नहीं करते ।।
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