Post – 2017-11-17

मूडी के आकलन का मतलब

समझने में समय लगा. टीवी कम देख पाता हूँ पर एन डी टीवी अवश्य देखता हूँ. इंडियन होने के गर्व के कारण भले वह किन्हीं हितों से जुड़कर भारत द्रोही की भूमिका में क्यों न हो.
उसमे मूडी के भारत विषयक आकलन पर एक उनके प्रिय अर्थशास्त्री के द्वारा विश्लेषण आ रहा था. वह बता रहा था कि १३ साल के बाद पहली बार भारत को इस श्रेणी में पहुँचने का अवसर मिला है. उससे भटकाने वाले कई सवाल किए गए पर उसने बताया कि न तो इसमें कोई मिली भगत है, न आनेवाले चुनाव से इसका सम्बन्ध है, यह मामूली बढ़त है और इस मामूली बढ़त के भी बहुत अधिक लाभ हैं. इसके लिए पिछली सरकार कोशिश करती रही पर यह मान्यता उसे न मिली. ज्यों ज्यों उसके उत्तर धनात्मक आ रहे थे प्रश्न पूछने वालों के चेहरे काले पड़ते जा रहे थे, इसलिए मैं जो अर्थशास्त्री नहीं हूँ उसके लिए इसका अर्थ है :
१. भारत का बुरा चाहने वालों का मुंह काला.
२. भविष्य में इंडिया टीवी को पूरा उत्तर विशेषज्ञ को लिख कर देना चाहिए कि भैये पैसा मुंह माँगा ले ले पर जवाब वही देना है जो मैं लिख कर दे रहा हूँ.

कुछ समय पहले सवाल पूछा जा रहा था कि मनमोहन सिंह बड़े अर्थशास्त्री हैं या मोदी. इसका एक दूसरा पाठ था कि रघुराम राजन बड़े अर्थशास्त्री हैं या मोदी. इसके तीन जवाब मिले :
१. जिस व्यक्ति को नोबेल मिला वह मोदी के प्रयोगों का समर्थक था. इससे मै रघुराम राजन के पांडित्व को हेय नहीं मानता. मूडी ने MODI को अधिक समझदार सिद्ध किया.
२. नटवर सिंह की आत्मकथा से प्रकट हुआ कि वह सत्ता के मोह में चिन्तक रह ही नही गए थे. सोनिया गांधी के इशारे पर उनके कुकर्मों को अपने माथे ढोने से पहले वह विश्वबैंक का ऋण उतारने के लिए अमरीकी इशारों पर नाचते रहे जिसकी और किसी का ध्यान नहीं गया. वह व्यक्ति क्या भारतीय हितों के अनुकूल सही अर्थशास्त्री हो सकता था? अपने निजी हित के लिए अपने देश और अपनी अर्थ व्यवस्था का अहित करने वाला क्या हमारे सम्मान का पात्र हो सकता है? क्या उसकी मोदी से तुलना हो सकती है?
३. मूडी की रपट से पता चला कि मोदी के साहसिक प्रयोग सुदूर जन हित से प्रेरित हैं और वह असाधारण परिस्थितियों का अनुमान करते हुए बनाए गए और सफल सिद्ध हुए है.

इसका एक तीसरा पक्ष है. भारत को यह रुतबा तेरह साल बाद मिला है. इसका जो अर्थ मेरी समझ में आया वह यह है कि :
१. अब तक के तीन सालों को जोड़ लें और कांग्रेस शासन के दश वर्षों को जोड़ लें तो कांग्रेस के शासंन में अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर से गुजरी और उसके लाख कूटनीतिक प्रयत्नों के बाद भी इस आकलन में सुधार न आया.
३. तेरह साल पहले भाजपा सरकार थी. अर्थात तब हमारी दशा अच्छी थी.
४. उससे पहले चंद्रशेखर की सरकार थी जब हाल इतने विकराल थे कि देश का सोना गिरवीं रखने की नौबत आ गई थी.

दूसरे सवाल उठेंगे तो उन पर विचार होगा पर अर्थशास्त्र से अनभिज्ञ इस अनाडी को क्या कोई यह समझाएगा कि
१. भाजपा के शासन काल में सबसे अच्छ्रे दिन क्यों आते हैं?
२. सबसे कम दंगे क्यों होते हैं?
३. साम्प्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद से मुक्ति के प्रयत्न क्यों होते हैं?
४. प्रभावशाली विपक्ष में रहते हुए भी वह संसदीय मर्यादा का निर्वाह कैसे करती है जिसका निर्वाह दूसरे नही कर पाते.
५. इतने मर्यादित आचरण के बाद भी उसे फासिस्ट कहने वाले किस पिनक में रहते हैं?
समझ कम है. मैं जानना चाहता हूँ. कोई मेरी मदद करेगा?