आधे लोग इधर, आधे लोग उधर
मैदान में कोई नहीं ।
आधे लोग निंदक, आधे प्रशंसक
आलोचक कोई नहीं।
निंदक निंदक की सुनते, प्रशंसक प्रशंसक की
लोगों की कोई नहीं।
दहाड़ों, चीत्कारो, फूत्कारो के घोल से रचा
सांय साेय करता आधुनिक जंगल का सन्नाटा
डरावना अंधकार भरी दोपहर का
सभी प्राणी झुंड में डरे हुए फिर भी तलाशते शिकार ।