अधूरे सच से बचते हैं
मुकम्मल सच नहीं कहते।
जो कहना चाहते हैं आप से
अक्सर नहीं कहते।।
अगर कहना पड़ा तो
लफ्ज मिलता ही नहीं देखें
न अपने से जुदा करते हैं
अपना भी नहीं कहते।।
मुहब्बत है, मुहब्बत ही भरी
सबके लिए फिर भी
शिकारी से सितमगर से
मुहब्बत है नही कहते।।
जलाया घर को अक्सर
रोशनी तो हो अंधेरे में
जले घर में महज कालिख
बची है हम नहीं कहते।।
छिपाने की नहीं चाहत
दबाने की नहीं आदत
हमारे पास था कुछ
जानते हैं पर नहीं कहते।।
खुदा के वास्ते मुझको
खुदा से मत मिला वाइज
पशेमां होगा मुझको देखकर
यह हम नहीं कहते ।।