मैं शायरी से बचता हूँ. जुमले शेर बन कर सवार हो जाते हैं तो अब दर्ज कर लेता हूँ . ऐसा ही एक शेर था जिसे साझा कर दिया और एक मित्र ने सुझाव रखा कुछ और शेर होते तो गजल बन जाती. आज की पोस्ट समय से पहले पूरी हो गई तो सोचा तुकबंदी कर के तो देखें . जो बना वह यूँ है पर इसका श्रेय उसको जाता है जिसने यह मांग रखी:
हम खुद भी गिरफ्तार थे, तेरी अदा को देख।
अपनी नज़र को देख, हमारी कजा को देख।।
यह भी समझ न आये, हमारी सलाह मान
यह कर्बला नहीं है मगर कर्बला को देख ।।
दुनिया कहां रुकी थी कहों पर पहुंच गयी
तू अपने कारकुन को देख कारवां को देख ।।
हम तुझको मनाते हुए बर्वाद हो गए
अपनी सिफ़त बयान कर, अपनी शिफा को देख।।
जन्नत भी बनाई तो गलाजत से भरी क्यों
अपने ख़याल देख और अपने जहां को देख ।।
मिट्टी में बुलंदी के आसमान छिपे हैं
तू खुद का आसमान बना कर खुदा को देख।।