Post – 2017-10-10

Manoj Kumarjha आप मार्क्सवादी नहीं थे, बुद्धिवादी थे। दुख की बात है कि आप संघवादी हो गए।

Bhagwan Singh आपने मेरी पोस्टों को ध्यान से पढ़ा नही, मैंने आधुनिक समस्याओं पर लिखना ही इस खेद के साथ आरम्भ किया था कि लेखक और बुद्धिजीवी महलों के ख्वाब का पीछा करते अपने झोपड़े की ताकत और गरिमा भूल गया है. सक्रिय राजनीती का हिस्सा बन कर रावण के घर पानी भर रहा है और उस महिमा को भूल गया है जिसमे सम्राट भी उसके चरणों की धूलि को माथे लगाते थे। उसके बाद की कुछ पोस्टों में समझाया था कि लेखक की राजनीति नहीं होती, समाजनीति होती है, राजनीति समाजनीति का हिस्सा है इसलिए वह चाहे तो भी उससे बच नहीो सकता, फर्क छोटा सा है। राजनीति के पीछे भागने वाले साहित्यकार , पत्रकार और कलाकार जुज को कुल समझ लेते हैं और टुकडों के पीछे भागने लगते हैं, मै फटकार लगाता हूं, तुम कुल के मालिक हो, अपनी गरिमा की रक्षा करो, तुम्हारी ओछी समझ और कारगुजारी से मेरी महिमा कम होती है।
लेखक की भूमिका समझाते हुए कहा था, यह शिक्षक की भूमिका के साथ ही रोग नैदानिक और चिकित्सक की भूमिका है जिसमें शल्यचिकित्सक की भूमिका शामिल है जिनके शब्दकोश में दो शब्द नहीं हैं, एक घृणा और दूसरा पराया। मैंने तीन पोस्ट एक पर एक डाली थीं, एक संघियों को लक्ष्य करके, दूसरा भारतीय कम्युनिस्टों को लक्ष्य करके और तीसरा अतिसंवेदनशील तथाकथित मानवतावादियों और उनके द्वारा सहकाए मुसलिमों को लक्ष्य करके. मैं सबको सही करना और स्वस्थ देखना चोहता हूं – मनसा, वाचा, कर्मणा। संघियों को टिप्पणी चुभी, नश्तर लगा तो तिलमिलाए तो, दूसरे तो जड़ सिद्ध हुए। दुर्भाग्य कि किसी में मुझे समझने तक की योग्यता नहीं।