मेरी अपनी समझ
(जरूरी नहीं कि आप उसे ठीक मानें)
टिप्पणियों में एक संवाद
Mahesh Jaiswal जनवरी-जून 1993 के ‘पल प्रतिपल’ में साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर अपने आलेख (जरुरत अपनी समझ दुरुस्त करने की है) में भगवान सिंह ने सटीक प्रतिपादित किया था ‘ हम यह समझाने में असफल रहे ही कि धर्मान्धता धार्मिक निष्ठा पर कुठाराघात है, मानवीय गरिमा पर कुठाराघात है’ …ब्राह्मणवाद हिंदुत्व का शत्रु है । यह इस्लाम से भी क्रूर है । यह किसी को भी बराबरी पर नहीं अपनाता, अपनों को भी अपमानित करके रखता है …मूल्यव्यवस्था के रूप में वह कायरता को प्रश्रय देता रहा है…चोरी से और सभी तरह से सुरक्षित हो जाने पर प्रहार करता रहा है, अत: इसने धार्मिक उन्माद के कारण दूसरों के प्राण लिये अवश्य हैं, पर प्राण दिए कभी नहीं …..’
जाहिर है संघ-भाजपा की राजनीति के सन्दर्भ में यह उनकी वैचारिक अभिव्यक्ति रही है । पर अब उसी संघ-भाजपा के ‘मानस पुत्र और योग्य शिष्य’ नरेंद्र मोदी की पक्षधरता और संघ का विरोध की उलटबांसी, पुराने दिनों के पत्रकार बी के करंजिया (ब्लिट्ज साप्ताहिक) की अवधारणा “नेहरू नेक और सब (कांग्रेसी) लुच्चे” की कुर्सी-पुर्सी की ‘समझदारी’ की याद दिलाती है !
सभी जानते हैं कि संघ ही माथा है, बाकी सब हाथ-पैर !!
Bhagwan Singh अब भी राय वही है पर विषय और संदर्भ भेद से संचार में अधूरापन आगया। इन्हीं पोस्टों मे पिछले साल लिखा है, संघ मुस्लिम लीग की उपज है, इसका आदर्श मुस्लिम लीग है, इसके लिए हिन्दू के हित का अर्थ हिन्दू का हित नहीं मुसलमानों का नुक्सान है। इसे संस्कृति की समझ नही है।
जहां से यह विवाद आरम्भ हुआ वहां मेरा आरोप था कि ये ये वचन बहादुर बनने की होड़ में न तो बोलना जानते हैं न ठंढे दिमाग से सोचना, वातावरण में उत्तेजना पैदा करते है जिसे एक वाक्य में सूत्रबद्ध किया था।
जहां से मेरे विचार को दूसरे लोगों की समझ नहीं आ पाते वहां सचाई यह है कि संघ से भी अधिक खतरनाक फिरकापरस्ती का खेल सेकुलरिज्म के नाम पर खेला जा रहा है, क्योंकि उनके पास कोई एजेंडा ही नही है जब कि भाजपा जनाधार के लिए संघ पर निर्भर होते हुए भी सही माने में सेक्युलर रही है और नरेन्द्र मोदी संघ की उपज होते हुए भी सबके साथ और सबके विकास की नीति पर चले हैं और आजिज आने पर एक आध रंदा लगा दिया है। उनकी महत्वाकांक्षा विश्व फलक पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने की है. इसे कोई मानने को तैयार नहीं होता और मैं उन्हें भारत का सबसे दूरदर्शी और कर्मठ और भरोसे का प्रधानमंत्री मानता हूँ. आज भी.
Mahesh Jaiswal मुस्लिमों-दलितों के प्रति स्थायी घृणा-तिरस्कार के डीएनए वाला ब्राह्मणवादी कट्टर हिंदुत्व ‘संघ’ के वृक्ष पर ‘सबका साथ सबका विकास’ के उदार चाल-चेहरा-चरित्र वाला मोदी-फल !!! पोस्ट ट्रुथ के काल में, हिरण्यकश्यप के घर भक्त प्रह्लाद पैदा हो जाने की कथा पर देश के तमाम उदार हिंदुओं सह अदवाणियों, जोशियों, शौरियों तथा मुसलमानों को यकीन कर लेना चाहिए !!
आप सुखी, स्वस्थ, समृद्ध रहेंं !!
Bhagwan Singh मैं जानता था और कहा भी कि “इसे कोई मानने को तैयार नहीं होता और मैं उन्हें भारत का सबसे दूरदर्शी और कर्मठ और भरोसे का प्रधानमंत्री मानता हूँ। आज भी।” इसके बाद इस विषय पर किसी प्रतिवाद की जरूरत न थी। आप ने जिद ठान ही ली कि आप को आप की सही जगह पर बैठा दूं तोः
1. आप इतने धुत हैं कि आप ब्राह्मणवाद और ब्राह्मण जाति में फर्क नहीं कर पाते। आप को यह पता नहीं कि ब्राहमणों में ब्राह्मणवाद के विरोधी अधिक संख्या में मिलेंगे पिछड़ों में ब्राह्णमणवाद अधि्क प्रबल है, दलितों में सबसे प्रबल।
2. आप इतने वर्णांध हैं कि यह नहीं देख पाते कि शिक्षित मध्यवर्ग भारत में यूरोप से कई हजार साल पहले से एक वर्ण के रूप में विद्यमान था.
3. आप यह नहीं देख पाते कि मार्क्सवाद के तीनों लक्षण – क्रांतिकारिता, ढुलमुलता और यथास्थितिवादिता – ब्राह्मण जाति में विद्यामान थे ।
४.शिक्षित और संवेदनशील होने के कारण सामाजिक राजनैतिक सभी आंदोलनों, संगठनो में इसकी अग्रणी, यथास्थितिवादी और पश्चगामी. तीनो तरह की भूमिकाएं रही हैं जिसका अपवाद कम्युनिस्ट आंदोलन भी नहीं है जिसका जन्म ही विलायती शिक्षाप्राप्त, विलायती अाकांक्षाओ और विलायती दिमाग के रईसजादों और कुलीनो द्वारा हुआ था और जिनकी जीवनशैली शाही थी और जिनकी दिलचस्पी भारत की आजादी में नहीं अपनी तानाशाही में थी, क्योंकि ये देश की आजादी से डरे हुए लोग थे, न कि साम्यवाद से प्रेरित ।
पहले पढ़ना सीखिए, फिर समझने की कोशिश कीजिए पर उसके बाद भी अपने विचारों को दूसरों पर लादने की जिद मत पालिए।