खट्टर को जाना चाहिए, प्रभू जाना चाहें तो जायं
प्रभु के मन्त्रित्व काल में कई दुर्घटनाएं हुई, ऎसी जिन्हें कोई दूसरा भी रोक न सकता था. खान पान को लेकर उन्होंने कुछ प्रयोग किए जो अपूर्व थे. अब आप वेज और नॉन-वेज के बीच ही नहीं उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय आहार और उपाहार के बीच चुनाव कर सकते थे. खोजी पत्रकारों ने बताया और दिखाया कि स्वच्छता का स्तर अपेक्षा के अनुरूप न था. यद्यपि उनके पास इस बात का आंकड़ा न था कि कब यह अपेक्षा के अनुरूप था फिर भी मैं मानता हूँ निगरानी के स्तर पर चूक हुई. यह नहीं जानता कि इस और ध्यान दिलाने के बाद उन्होंने सुधार की और ध्यान दिया या नही, या दिया तो कितना.
उनके स्तर पर जो निर्णय लिए जा सकते थे और लिए गए उनके कारण कोई दुर्घटना नहीं हुई. जैसे कुछ गाड़ियों की गति बढाने का फैसला. किसी दुर्घटना का कारण यह न बताया गया कि पटरियां उतनी गति के अनुरूप न थी और इसलिए पटरी उखड गई. मानव रहित क्रोसिंगों को सुरक्षित बनाने के अभूतपूर्व अभियान के कारण. जो दुर्घटनाएं हुईं उनकी प्रकृति अलग है . उनमें से किसी के लिए उन्हें दोषी नही ठहराया जा सकता. इस विषय पर मैं अपने ज्ञान और अनुभव के बल पर अब तक के किसी टिप्पणीकार, स्तंभकार और एंकर के अभिमत को बचकाना, दुराग्रह्पूर्ण या उद्वेजक मानता हूँ, जिसमें मैं इंडिया टीवी के कुशल एंकर की योजना और प्रबंधन को भी शामिल करत्ता हूँ. मैं यह दावा क्यों करता हूँ इसे कल समझाऊंगा.
परन्तु हरयाना के मुख्यमंत्री खट्टर से अयोग्य और प्रशासनिक दृष्टि से अक्षम व्यक्ति पाने के लिए शोध कार्य की जरूरत होगी. शोध के बाद भी कोई किसी देश में मिल ही जाए यह जरूरी नहीं. जिस जत्थे का कोई एक व्यक्ति यह दावा करे कि उसके गुंडेश्वर को कुछ हो गया तो भारत का नक़्शे से निशान मिटा दिया जाएगा और वह नहीं समझ पाता कि ऐसे लोग इस कथन के साथ देशद्रोह के संदेह में हिरासत में लिए जाने चाहिये, जो मात्र डंडे लेकर चलने वालों के डंडे ले कर उन्हें आगे जाने दे और उनके ड्राइविंग लाइसेंस का नंबर लिए और उन्हें यह हिदायत दिए बिना आगे जाने दे कि यदि कुछ भी अप्रिय घटा तो तुमको उसमें भागीदार मानकर तुम्हारे ऊपर कार्र्वाई की जायेगी. जो धारा १४४ लगाकर भी लोगों का जमावड़ा होने दे, जिसे सक्रिय होने के लिए बार बार अदालत को लानत भेजनी पड़े, उस निकम्मे मुख्यमंत्री को न हटाया गया तो यह इस बात का प्रमाण होगा कि मोदी संघ के दबाव और उसके निकम्मों के बचाव से मुक्त नहीं हैं और उनसे बहत अधिक आशा नहीं रखी जा सकती.