टकावादी मार्क्सवाद (११)
‘‘तुमने तो मुझे सचमुच डरा दिया यार, मैं रात में बुरे सपने देखता और नीद टूट जाती, फिर सोता तो वही सपना।’’
‘‘तुम अपनी औकात को कम करके आंक रहे हो। तुम सिर्फ रात में ही नहीं, दिन में भी बुरे सपने ही देखते आ रहे हो। कई साल से केवल बुरे सपने। और मुहावरा तो केवल नींद टूटने का है, तुमने जाग टूटने और फिर फिर जागने की कोशिश में ही पिछले चार साल बिताए हैं क्योंकि यह बीमारी चुनाव से पहले ही आरम्भ हो गई थी। फिर भी रात कुछ ऐसा तो हुआ ही कि तुम्हें खुद भी इसका अहसास हुआ। बताओ, मैं भी तो सुनूँ।’’
“यह ठिठोली का समय नहीं है, समस्या सचमुच गंभीर है। तुम बताओ एक तानाशाह को सबसे अधिक खतरा किससे होता है? बुद्धिजीवियों से ही न, वह अपने आलोचकों को या तो गायब कर देता है या जेल में दाल देता है। सूचना के स्रोतों को अपनी मुट्ठी में कर लेता है और जो झुकने से इनकार करते हैं की उन्हें उत्पीडित करके या तो तबाह कर देता है या झुकने पर मजबूर कर देता है। यह आदमी यही कर रहा है, कहो कर चुका है और तुम फिर भी कहते हो यह लोकतंत्रवादी है। खुली सचाई यह है कि तानाशाही आ चुकी है। हम आपातकालीन परिस्थितियों में आपात काल की घोषणा के बिना ही डाल दिए गए है।
“तुम ठीक कह रहे हो। मैंने पहले ही कहा था कि यदि तानाशाही आई तो मोदी के कारण नहीं आएगी, तुम्हारे कारण आएगी। गौर करो, तानाशाह लोगों के अधिकारों का हनन करते हुए, कानून का उल्लंघन करते हुए, शक्ति का प्रयोग करते हुए ऐसा करता है। इसने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया, उलटे तुम आजादी आजादी चिल्लाते हुए नियमों और मर्यादाओं का उल्लंघन करते रहे। तुम उसे फासिस्ट बताते रहे और फासिस्ट भाषा और हथकंडों का प्रयोग करते रहे और उसने दिखा दिया कि फासिस्ट प्रवृत्तियों को भी जनतान्त्रिक तरीके से विफल किया जा सकता है। तुम्हे याद है उसने minimum government and maximum governance का नारा देते हुए चनाव जीता था और यह उसी का अमली रूप है।
“लोकतंत्रवादी हुआ करे, पर विरोध को कुचल देना, कोई रोक टोक करनेवाला न रह जाना, जो जी में आया करते जाना, यही तो करता है तानाशाह। वही हो रहा है।”
“कुचल देना न कहो, कहो विपक्ष की अपनी करनी से उसका डूबते जाना, बुद्धिजीवियों का अपने अहंकार में, शोर मचाते हुए सन्नाटे का हिस्सा बन जाना, कहो। खैर, प्रक्रिया जो भी हो, शक्ति का एक व्यक्ति में के्द्रित हो जाना मुझे भी डरावना लगता है। तुम लोग मेरी बात पर ध्यान तो देते नहीं, मैंने पहले ही कहा था यदि तानाशाही आई भी तो इसके जिम्मेदार तुम लोग होगे। और आज तो एक और गजब हो गया, तुम्हारा सौ साल पुराना नुस्खा अपने आप फट गया। तुम लोग वोट बैंक की राजनीति के चलते मुसलमानों में हिंदुत्व के प्रति नफ़रत फैला कर उसे उनके वोट से वंचित करते रहे। उसने नफ़रत की दीवार को ढहाते हुए मुस्लिम महिलाओं को सीधे अपने पक्ष में कर लिया और मुस्लिम पुरुषों की आवाज में जो फर्क नजर आया वह यह कि वे जिस आदमी से इतना परहेज करते रहे हैं, वह सचमच सबको साथ लेकर सच्चे दिल से चलना चाहता है। नफ़रत का विस्तार करते हुए अपने को जिलाए रखने का तुम्हारा सबसे कारगर औजार बेकार हो रहा है। शिया समुदाय में उसकी पैठ पहले हो चुकी है.। अब तो कोई नया हथियार तलाशो।