टकावादी मार्क्सवाद (१०+)
सेल्फी का मतलब
“यार, तुम यह क्यों न समझते कि मोदी सबको साथ लेकर नहीं चल सकता । सबका वोट बटोरने की कोशिश अवश्य कर सकता हैं। वह एक नंबर का लफ्फाज है, एक नंबर का नाटकबाज, एक नंबर का शातिर और और..” और के आगे क्या कहना था यह उसे भूल गया।
‘यह तुम्हे कब पता चला, यह बता सकते हो?”
“पहले दिन से। सच कहो तो उससे भी पहले से । गुजरात कांड से।”
“कुछ लोगों को उससे भी पहले का इतिहास पता है। वे गोधरा तक और उससे पीछे तक की कहानी जानते है। गोधरा जानने वाले भी इसे तीन तरह से जानते है। ज्ञान की एक शाखा के अनुसार मोदी ने ही गुजरात कराने के लिए गोधरा कराया था । दूसरे के अनुसार जलने वाले जलने का इंतजाम करके निकले थे. तीसरी में गाड़ी जंजीर खींच कर उस जगह रोकी गई थी जहां भीड़ ईंट पत्थर और पेट्रोल के कनस्तर लिए खडी थी और इसके पीछे एक कांग्रेसी नेता था। एक समझ से जब गोधरा कर ही लिया था तो गुजरात की क्या जरूरत थी, दूसरी के अनुसार गुजरात न होता तो गोधरा होता रहता। और एक तीसरी समझ से गोघरा होने के बाद गुजरात को रोका ही नहीं जा सकता था। लगता है तुम भी इसी ख़याल के हो इसलिए गुजरात पहुँच कर गोधरा भूल जाते हो, क्योंकि उसकी याद आते ही अपराधी हाथ से निकल जाएगा। राजनीति करने वाले इतिहास से लुकाठे निकालते हैं और सत्ता के लिए आगजनी तक के लिए तैयार रहते है। जिस इतिहास में तुम ले जाना चाहते हो उसके असल अपराधी भाजपा और मोदी नहीं, कांग्रेसी ठहरते हैं। मोदी ने उसके भीतर से वह रोशनी ली जिसके कारण उसके बाद ग्यारह साल तक गुजरात में शान्ति रही।”
उसने सर पीट लिया, “कमाल है भई। कमाल है। तुम तो यह भी भूल गए कि इसी के कारण अटल जी ने मोदी की भरी सभा में खिंचाई करते हुए राजधर्म के पालन की नसीहत दी थी।”
“भूल तुम जाते हो कि यदि उस समय मोदी से कुछ प्रमाद हुआ भी था तो उसके बाद से उसने लगातार राजधर्म का निर्वाह किया है और संघ के भीतर भी अटल जी की तुलना में अपनी साख अधिक मजबूती से बचाए रखी है। तुम इसके पीछे फरेब देखते हो, मैं इसके पीछे इस व्यक्ति का कौशल देखता हूँ। तुम संदेह छोड़ना नही चाहते, मैं संदेह का कोई कारण नही देखता.”
“मुझमें थोड़ी अक्ल बची रह गई है, तुमने अंध श्रद्धा में उसे खो दिया है।”
“काल्पनिक आरोप और फिक्सेसन का न कोई इलाज है न अंत, िइसलिए मैं कहता हूँ प्रमाणों के आधार पर इस व्यक्ति को समझो.
“यदि तुम यही चाहते हो कि मोदी को हटाया जाय तो भी तुम्हें मोदी को बहुत धैर्य और शान्त मन से समझना होगा । उसे भयानक बताओगे तो डर पैदा होगा। घबराहट बढ़ेगी। डरा और घबराया हुआ आदमी अपनी पैंट गीली कर सकता है, अपने दुश्मन का बाल बांका नहीं कर सकता। तुम जैसा प्रचार करते हो, जैसी प्रतिक्रियाएं करते हो वह मोदी को रास आता है। तुम्हारे भोथरे तीरों से उसे गुदगुदी होती है। सही हथियार के चुनाव के लिए भी, उसे घातक बनाने के लिए भी, शत्रु की बहुत अच्छी समझ होनी चाहिए।”
“यार तुझसे तो अच्छी तरह समझते ही हैं। तू ही आंख बन्द करके ध्यानस्थ हो कर जो सोचता है,उसे देखता है।”
“कहावत है घोड़ को खींच कर पानी तक लाया जा सकता है, पर यदि वह पीने से इन्कार करे तो पानी पिलाया नहीं जा सकता। फिर भी तुम घोड़े नहीं हो, उसके बड़े भाई हो, इसलिए यह बताओ सेल्फी का मतलब जानते हो?”
“सेल्फी का मतलब है आत्मरति। प्रदर्शनप्रियता। वही जो तरह तरह के कपड़े बदलने में दिखाई देती है। पर इसका शौक जानलेवा भी हो सकता है, इसकी खबरें आए दिन अखबारों में आती रहती हैं।” उसका चेहरा गर्व से चमक रहा था।
“तुम्हारी नजर तो सचमुच बड़ी पैनी है , यार। मैं इसकी उम्मीद तुमसे नहीं करता था। लेकिन पैनी आंखों से भी कुछ देखने से रह जाता है।”
वह चौंक उठा, “तुम्हारा मतलब?”
“साहित्यकार होकर भी इसकी प्रतीकात्मकता को नहीं समझ सके। यह मोदी का प्रेस और मीडिया पर पहला सर्जिकल स्ट्राइक था। इसका सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए उसने कहा था,
‘मुझे तुम्हारे कैमरे की जरूरत नहीं। मैं अपना विज्ञापन स्वयं कर सकता हूं। अपनी आवाज जनता तक सीधे, पूरी सचाई के साथ पहुंचा सकता हूं। जिससे तुम्हारे काट छांट से सहम कर ‘प्रसीद देवो प्रसादग्राही’ कहते हुए करबद्ध खड़ा न होना पड़े, न जनधन को अपने चापलूसों पर बर्वाद करके अपनी छवि बचाने की जरूरत पड़े। उसने पूरे प्रचार तन्त्र को दिखाते हुए कहा कि मैं अपनी छवि का निर्माण स्वयं अपने काम और कौशल से कर सकता हूं। यह निरी डींग नहीं थी, यह उसने मन की बात कार्यक्रम से उस अन्तिम आदमी तक सीधे पहुंचने का रास्ता निकाल कर दिखा दिया, जिस तक न अखबार पहुंच सकते न टीवी चैनल।
“अब तुम याद करो, इन्दिरा युग से कल तक चली आई टुकड़खोर पत्रकारिता के चलते कल का छोकरा पत्रकार भी इस परितोषवाद से इतना अघाया हुआ था कि बड़े से बड़े साहित्यकार को अपनी कृपादृष्टि का पात्र समझने और अपने को लोकतन्त्र का सूत्रधार और चौथा खंभा मानने लगा था। इस खंभे को खड़ा रखने, इसका जी खुश रखने पर कितना खर्च आता था, यह मुझसे अधिक तुम्हें पता होगा। उसने पहले ही सर्जिकल स्ट्राइक में इसे जमीन पर ला दिया। उसने अपने प्रचार पर खर्च करने की जगह अपने प्रचार कौशल से पता नहीं कितने हजार करोड़ की कमाई शुरू कर दी। अब तुम देखो, सारे पत्रकार, सारे ऐंकर एक तरफ और मोदी अकेला एक तरफ। तौल कर बताना कौन किस पर भारी है? कौन किससे सीख सकता है? इसमें मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि तुम जोड़ने घटाने में मुझसे आगे हो।”
वह कुछ कहने को हुआ, पर मैं अभी अपनी रौ में था, “और देखो, यह सूझ और प्रयोग भारत के किसी अन्य नेता ने तो इससे पहले किया नहीं, दुनिया के किसी अन्य नेता ने किया हो तो मुझे नाम बताना, क्योंकि तुम्हारा सामान्य ज्ञान भी असामान्य है। हां, अब बताओ बीच में तुम कुछ कहने जा रहे थे।”
“तुम समझते हो प्रेस की आजादी छीन कर उसने कोई अच्छा काम किया है?”
“टुकड़ों पर पलने वाले टुकड़े फेंकने वालों के सेवक होते हैं, आजाद नहीं होते। टुकड़े परोसना बन्द करके उसने पहली बार पत्रकारिता को उसकी आजादी लौटाई है। यह दूसरी बात है कि अखबारों के मालिकों से उसे अपनी आजादी की दूसरी जंग लड़नी है परन्तु पालतू होने की सुविधाओं का आदी हो जाने के कारण इसमें न इसकी इच्छा है, न शक्ति। कल बरखा दत्त बता रही थी कि उसे पहले गुप्त तरीके से ले कर खुले तरीके तक क्या क्या मिलता था और अब कुछ भी नहीं मिलता। उसे आजादी शब्द तक भूल गया हैं, नहीं तो यह तो कहती कि सब कुछ खोकर हमने अपनी आजादी हासिल की है।”