दिन बुरे जा रहे हैं गो अपने
फिर भी खुश हैं कि हो रहा कुछ है ।
मानता क्यों मैं तोहमतों का बुरा
तुमने जी खोल कर कहा कुछ है ।
दिन बुरे जा रहे हैं गो अपने
फिर भी खुश हैं कि हो रहा कुछ है ।
मानता क्यों मैं तोहमतों का बुरा
तुमने जी खोल कर कहा कुछ है ।