Post – 2017-07-20

20 Jul at 11:29 PM

मैं जब गंदगी से पैसा बना कर खाने वाले सफ़ेदपोशों की बात कर रहा था तो लगा होगा चौंकाने के लिए एक तल्ख़ मुहावरे का प्रयोग कर बैठा. पर मेरे सामने जो तथ्य थे वे इस प्रकार हैं.

१. मैनहोल में सफाई के लिए उतरने वाले, मानवीय गरिमा और सुविधा से वंचित किये गए लोग ठेकेदारों के द्वारा काम पर लगाए जाते हैं जो उनके भाई-बन्धु भी हो सकते हैं और सवर्ण भी. वह मुनिस्पलिटी से जिस रकम पर ठेका लेता है वह उससे कहीं अधिक होती है जितना इनको नियमित सेवा में रखकर चतुर्थ श्रेणी का वेतन देने पर खर्च होती. उसी का एक हिस्सा वह ठेका देनेवालों को रिश्वत में देता है. अब वह सस्ते से सस्ते भाव पर उसी समुदाय के लोगों को लगाता है जो सरकारी चाकरी में उससे चारगुना वेतन ले कर भी काम नही करता. शताब्दियों से सभी अधिकारों से वंचित रहने के बाद उसे पहली बार जातिगत टिप्पणी करने का आरोप लगा कर अपने से बड़े बड़ों को डराकर चुप करने का अधिकार मिला है और वह इसकी आड़ में कामचोरी करता है. सरकार में नौकरी की सुरक्षा ने निकम्मेपन क विस्तार किया है, वरिष्ठता क्रम से पदोन्नति ने श्रेष्ठता की स्पर्धा को समाप्त करके आलस्य को हमारे स्वभाव का अंग बना दिया, परन्तु आरक्षण के नाम पर पदोन्नति के वरिष्ठता क्रम को तोड़ की जानेवाली पदोन्नति ने लगेगा पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया. परन्तु पराकाष्ठा को भी तोड़नेवाली कुछ स्थितिया होती है. जिसे आरक्षण का भी लाभ नहीं मिला, क्योंकि वह जो काम करता है उसे कोई दूसरा करने को तैयार ही नहीं था. पदोन्नति का रास्ता ही बंद. ऐसा व्यक्ति उस एकमात्र अधिकार का दुरूपयोग करने से बड़ा कौन सा सुख पा सकता है. इसलिए मैं उस स्थिति के लिए उन्हें दोष नहीं देता कि वे कामचोरी करते थे और इस हेकड़ी से करते थे कि जो कुछ उन्होंने कर दिया उसे उनकी कृपा समझते थे.

परन्तु जिस देश में सभी स्तरों पर निकम्मापन, आलस्य और इस गिरावट पर गर्व करने की प्रवृत्ति उसके सबसे प्रबुद्ध तबकों – अध्यापकों, बुधिजीवियों और न्याय और विधिनिर्माण से जुड़े लोगों में भी आ गई हो उसमें क्या उन्हीं शिथिलताओं के लिए उस व्यक्ति या व्यक्तियों को दोष दिया जा सकता है जिसे/जिन्हें ज्ञान, अर्थ, सम्मान सभी से वंचित करके मानवाकार मानवेतर प्राणियों में बदल दिया गया हो. जिन्हें यह तक पता नहीं कि देश का मतलब क्या होता है, कर्तव्य और कार्य

निष्ठा का मतलब क्या होता है, जिसे दुसरे सभी अपना देश कहते हैं वह यदि उसका देश है तो उसमें उसकी जगह कहाँ है. जिस इतिहास की बात की जाती है उसमें वे कहाँ हैं और क्यों हैं.

इसलिए उनके गलत निर्णयों के लिए उन्हें नही उस देश और सरकार को जिम्मेदार मानना होगा जिसने न उन्हें वे सुविधाएं दीं न ही कर्तव्यबोध जाग्रत होने दिया, जिसका परिणाम ठेका पद्धति है और जिसे इसलिए अपनाया और यहाँ उसे पैसा ही तब मिलेगा जब काम करेगा.

परन्तु आप लोगों में से कुछ लोग तो उस पृष्ठभूमि से ही परिचित न होंगे जिसकी पोस्ट की अगली कड़ी यह लेख है. इसे पूरा करने में भी मुझे घबराहट हो रही है. अभी जो हमने कहा उससे आपकी सहमति और असहमति के बिंदु और कारण क्या है. मेरा कंप्यूटर मुझे दिन भर परेशां करता रहा . अब समस्या सुलझी है. इसके दूसरे पक्षों पर कल.तब तक आपकी प्रतिक्रिया भी इसमें शामिल हो जायेगी.