Post – 2017-07-21

इस अंश को मैंने दो दिन पहले लिखा था और कंप्यूटर की समस्या के कारण एक दूसरे वाल पर पोस्ट कर दिया था। इससे बाद की कड़ी कल आपने पढ़ी और कल के बाद की कड़ी को आज अपराह्न में कभी पढ़ सकते हैं ।
21 Jul at 7:57 AM

हम जिस देश में रहते हैं उस देश में भंगी रहते हैं

{मेरा डेस्क टॉप कल बैठ गया. जो कुछ लिखा था और हाज़िर करना चाहता था न कर सका. पर मैं इस विफलता पर जितना खिन्न था उतना कभी न हुआ था. कुशल यह कि उसे पेन ड्राइव में भी बचा लिया था, अब उसे दे रहा हूँ. इस बीच इस पर संसद में कुछ नज़ारे भी देखने को मिले. उनसे उठे सवालों को भी इसमें जोड़ने की कोशिश करूँगा, कर पाऊँगा या नहीं नहीं जानता.}

मेरा इरादा किसी का अपमान करने का नहीं. यह इरादा तो हो ही नहीं सकत्ता कि अपने देश का अपमान करूं. ये दोनों स्वयम अपना अपमान करने जैसे हैं. परन्तु यदि यह लगे कि हमने अपना सम्मान खो दिया है और इसके लिए हम स्वयम् उत्तरदायी हैं तो क्या उस दशा में भी आत्मश्लाघा करते रहेंगे. इस देश की सामाजिक या आर्थिक व्यवस्था यदि पाशविक रही हो और आज भी वही रह गई हो तो इसका कीर्तन तो नहीं किया जा सकता. देश बहुत सारी चीजों से बनता है जिनमें से कुछ प्रकृति प्रदत्त है, जैसे भौगोलिक स्थिति और भू संरचना, परन्तु यदि वह बहुत अनुकूल हुआ तो घने जंगल उगाने के लिए उपयुक्त होता है, और ऐसे जंगलों से भरे देशो के बारे में हम जो कुछ जानते हैं वह यह कि वे जानवरों के काम के ही रह जाते हैं, और यदि मनुष्य ने उसे अपने हस्तक्षेप से अपने अनुकूल नही बनाया, आलस्य, आत्मविश्वास के अभाव या सूझ की कमी के कारण अन्य पशुओं की तरह प्रकृति पर ही निर्भर रह गया तो वह भी पशुओं में से एक पशु और वह भी सबसे दीन-हीन बन कर रह जाता है. वह भूभाग एक भौगोलिक क्षेत्र बन कर रह जाता है, देश बन ही नहीं पाता. देश मानव समाज और उसकी व्यवस्था से, उसकी मूल्य प्रणाली से बनता है, और यदि उसमें कोई खोट नज़र आये तो वह उसी अनुपात में विकृत हो जाता है और ऐसे देश पर गर्व नही किया जा सकता.

एक शब्दातीत संचार प्रणाली से बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि यह हिन्दुओं का देश है और उनका काम उनसे सुविधाएं मांगना है जिन्हें जुटाने का काम भी उन्हीं का है. यदि इसकी किन्हीं विकृतियों का सवाल आजाये तब तो वे पूरी दृढ़ता से इसका ऐलान भी करेंगे, लानत भी भेजेंगे कि यह हिन्दुओं का देश है, इसलिए इसकी साड़ी विकृतियां हिन्दुओं के कारण हैं. इसकी पड़ताल में, विकृति के मामले में, हिन्दू सिकुड़ कर सवर्ण और सवर्ण सिकुड़ कर ब्राह्मण और ब्राह्मण सिकुड़ कर संघ और भाजपा हो जाएगा और फिर भर्त्सना यज्ञ की सर्वाहुति आरम्भ हुई तो अन्त्त्याहुति का ध्यान ही न रहेगा.

यह नहीं कहता की जिस घटना ने मुझे ग्लानि से भर दिया उसके लिए वे उत्तरदायी हैं जो हिंदुत्व को गालियां देते हैं, क्योंकि यह अपने को बचाने और उस कोढ़ को जारी रखने का एक बहाना बन जाएगा. यद्यपि इसमें सहापराधी वे भी हैं. हम यह कहना चाहते हैं की एक गौरवशाली परम्परा के उत्तराधिकारी होते हुए भी, इसके निराकरण के लिए अपेक्षित इक्षाशक्ति के अभाव के कारण हम सभी उत्तरदायी हैं और जब मैं इस देश में भंगी बसते कहता हूँ तो इसकी उस आबादी में अपने को भी शामिल करता हूँ !

हमने एक ऐसी व्यवस्था बनाई और चलाई है जिसमें, जिसे स्वच्छ होना चाहिए उसे भी गंदे नाले में बदल देते हैं, लफ्फाजी के कीर्तन से उसे साफ करने की प्रतिज्ञाएं करते हुए उसकी सफाई का पैसा भी खा जाते हैं जैसे पतित पावनी गंगा और जमुना या हमें मलिनता से बचाने वाले मेहतर अर्थात अपने से श्रेष्ठतर पर उसको इतनी मलिनता में रखते हैं, इतनी दीनता में रखते हैं, इतनी जुगुप्सा से उसके साथ पेश आते हैं कि वह हमशक्ल होते हुए भी इंसान नहीं रह जाता, उसकी यातनाओं पर कोई ध्यान नही देता. उसकी मौत पर कहीं कोई पत्ता तक नहीं हिलता.

उसे कहते सफाईकर्मी हैं पर उसे ही गन्दगी में रहने को बाध्य करते हैं. गंदगी से गन्दगी साफ़ कैसे हो सकती है? ओझल अवश्य की जा सकती है. ओझल भी इस तरह कि वह हमारे शारीर पर या परिवेश में तो न दिखाई दे पर दिमाग में भर जाय, आत्मा में उतर जाय और हम उसके इतने आदी हो जायं कि यह महसूस करना तक भूल जायं कि जब तक हमारे समाज में कुछ लोग भी इतनी गर्हित अवस्था में हैं तब तक ऊपर से चिकने सुथरे दीखने वाले स्वयम्ि गंदगी को छिपानेवाले के पिटारे हैं. सड़े हुए भीतर तक.

हमारे समाज का एक हिस्सा बाहर से गन्दा है दूसरा भीतर से सडा हुआ. दो तरह के भंगियों का समाज इस सचाई को रेखांकित करता हुआ कि हम उस देश के वासी हैं जिस देश में भंगी रहते हैं. एक भंगी दूसरे इंसान का हक छीन कर खा जाता है और उसे भंगी बना देता है. एक गन्दगी में जीने वाला भंगी और दूसरा उस गंदगी में से कुछ निकाल कर खाने वाला भंगी. एक बीमार, दूसरा डरा हुआ कि यदि उसकी की दुर्गति पर आह भी भरा तो पहचान लिया जायेगा.
{इसे दो टुकड़ों में ही रखना ठीक होगा पर मैं उन चार नौजवानों के मैंनहोल में घुट कर मरने से व्यथित था यह याद रहा तो इन सरल इबारतों का अर्थ समझ में आयेगा और मेरी पीड़ा और अगले और सवाल भी, }