हिन्दू समाज को दो खतरों का सामना करना है और दोनों की प्रकृति सामी है. एक कट्टर मुस्लिम और दूसरे कट्टर हिन्दू. दोनों में समानता यह नहीं है की दोनों के अपने धर्म ग्रंथ हैं, बल्कि यह कि एक के पास किताब दूसरे के पास गाय है. दोनों इनकी आड़ में भावनाएं भड़का कर अपने समाज को निश्चेत करके उसे अपना औजार बनाने का प्रयत्न करते हैं और यदि ये सफल हो जाय तो जहाँ जहाँ सफल होंगे वहाँ कयामत नही तो छोटी कयामत आ ही जायेगी. जिस धर्म में भावनाओं और आवेगों को षड्रिपुओं में गिना जाता हो, उन्हें भड़काने वाले उसके रक्षक तो नहीं हो सकते, वे किताब की आड़ में ऐसा करें, या इस्लाम खतरे में के नाम पर ऐसा करें या गाय के नाम पर ऐसा करें. वे उन्माद फैलाते हैं.
मेरे एक फेसबुक मित्र उदय सिंह हैं. उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर से अपनी शिक्षा आरम्भ की जिस की शिक्षा पर उन्हें गर्व है. हिन्दू विचारों, मूल्यों, मान्यताओं के प्रति उनमें आदर है और इन पर चोट हो तो पीड़ित होते हैं. पर हाल ही में अपने गाँव जाकर अपने परिवार के पालित पशुओं की दशा और दिशा पर आज ही एक पोस्ट की है. जो लोग उनकी उलझन का विवेकपूर्ण और व्यावहारिक समाधान दे सकते हों, उनको ऐसा करने के बाद किसी सवाल को लेकर प्रश्न करना चाहिए. मोदी उस सच को जानते हैं जिसका प्रत्यक्ष अनुभव उदय ने किया है और जो गाय को लेकर भावनाओं को भड़का रहे हैं वे उनके साथी हैं जो बिताब को लेकर भावनाएं भड़काते हैं. दोनों उस हिंदुत्व के शत्रु हैं जो मानसिक उद्वेग के सभी रूपों को अपना शत्रु मानता है और इसलिए गाय के नाम पर भावनाएं भडकानेवाले मोदी के भी शत्रु बनते जा रहे हैं. ये बहकी बहकी बातें भी वे तभी तक कर सकते हैं जब तक मोदी के कारण भाजपा कि सरकार केंद्र में है, अन्यथा जब तिकड़म से बहुमत सिद्ध करने वाली कांग्रेस सोनिआ प्रभाव में यह कानून बना रही थी कि किसी साम्प्रदायिक फसाद में यदि एक पक्ष हिन्दू हो तो जाँच किये बिना हिन्दू को दोषी माना जाये और जब कांग्रेस के बबुआ भविष्य अमेरिका को समझा रहे थे कि सबसे खतरनाक हिन्दू आतंकवाद है, तो भारत में ईसाइयत का प्रचार करने को कृतसंकल्प अमेरिका को रास भी आता था, जब इस आरोप को प्रामाणिक बनाने के लिए कुछ लोगों को अभियुक्त बना कर जेल में दाल दिया गया पर संलिप्तता सिद्ध न की जा सकी तब ऐसे मुखर हिन्दुत्ववादियों की मुसलामानों, सेक्युलरिस्टों से एक ही समानता थी. सभी इन सुद्दुर ईसाई योजनाओं से अनभिज्ञ थे, या जान बूझ कर चुप थे और अपने बिलों में समाये हुए थे. आज ये सभी अपने अपने कारणों से मोदी विरोध में सक्रिय हैं यह भी इनके बीच नै समानता है. मोदी के न रहने और कांग्रेस के किसी भी तिकड़म से सत्ता में आने के बाद यदि सोनिआ ने फरमान जारी कर दिया की मंदिरों के सामने और बाज़ारों के बीच खुले आम गोवध होगा तो एक तीसरी समानता दिखाई देगी. सभी चुप लगा जायेंगे. इसलिए जिन्हे हिन्दू समाज की बलि नहीं देनी है उन्हें उस नेता पर विश्वास रखना चाहिए जो देश को आगे ले जाना चाहता है, उसकी समस्याओं से अवगत है, किसी से कम हिन्दू नहीं है पर देश को साम्प्रदायिकता से आगे ले जाना चाहता है. आप मेरी बात न मानें यह आपके हित में हे। मैं तो मोदी का वकील ठहरा.