तुक-बेतुक
जवानी के दिन तो जवानी को दिन थे
न मेरे थे वे मन के मानी के दिन थे।
वे मस्ती के और फाकामस्ती के दिन थे
वे सपनों के दिन थे कहानी दिन थे।
वे घुटने तड़पने बहकने के दिन
बद हवासी के दिन बदगुमानी के दिन थे।
वे मरने के लाखों बहानों के दिन थे
रकीबों की भी मेह्रबानी के दिन थे।
कई राज थीं खोलतीं झुक के पलकें
तुम्हारे भी वे आनाकानी के दिन थे।
सरे राह कुछ गुल खिलाने के दिन थे
जवानी के दिन छेड़खानी के दिन थे।
वे दिन देखिए तो हवा हो गए हैं
मगर जब तलक थे जवानी के दिन थे ।