मुझ पर विश्वास करेगा वह धोखा खाएगा.
नादानों में नादान वह पहचाना जाएगा
मतलब यह, जनाब, कि मेरी बात मत मानिये, उसे कई सुलभ विचारों में से एक विचार मानिये और उसके बाद अपनी अक्ल से काम लीजिये कि इनमें से कौन अधिक सही है और यदि कोई सही न लगे तो अपनी अक्ल पर भरोसा कीजिये और खुद समाधान निकालिये.
यह चेतावनी इस लिए देनी ज़रूरी हुई कि हम समझते हैं कि पश्चिम से परिचित होने के बाद भारत में नवजागरण आया, जो सच है पर संदिग्ध भी है.
मैं जो उलटी बात कर रहा हूँ वह यह कि यूरोप में तीन नवजागरण आये थे. पहला धर्मयुद्धों के दौरान अरबों का सामना करते हुए पूर्व की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक अग्रता से परिचित होने और उनसे सीखने के साथ अपने युन्नानी अतीत के पुनरुद्धार के साथ. दूसरी उससे अर्जित ऊर्जा से विचार की स्वात्तता के उन्मेष के साथ जो कोपरनिकस और गालीलिओ में व्यक्त हुआ था और तीसरा नवजागरण संस्कृत भाषा और साहित्य से परिचित होने के बाद आया था. यूरोप के सारे दार्शनिक, सारे बुद्धिजीवी, कवि भारतीय प्रभाव में उससे अधिक सराबोर मिलते हैं जितने प्रथम नवजागरण के उनके भारतीय प्रतिरूप.
आश्चर्य इस बात का है कि जिस भारत से परिचय के बाद आधुनिक पश्चिम का सांस्कृतिक नवोन्मेष हुआ और व्हिटमैन और इलियट तक और उसके बाद के भी अनेक चिंतक अभिभूत रहे उससे हमारे तथाकथित आधुनिकतावादियों की ऐसी क्या विरक्ति हुई कि वे जो पश्चिम और पूर्व का समन्वय करते हुए ऎसी नई दिशा खोल सकते थे जिससे उनकी वह पहचान भी बनती जिसे बनाने की आतुरता में वे अपना घर तक भूल गए, अपने पाठकों से कट कर गुलदस्ते के फूल बन गए, परन्तु सही दिशा में उल्लेखनीय प्रयोग न कर सके. यह बात अपने मित्र अरविन्द कुमार के फ़ाउस्ट प्रेम से याद आई. क्या आपको पता है कि यह रचना भी भारतीय प्रभाव में लिखी गई है. यदि नही तो कल मैं इसके प्रमाण स्वरूप स्वीकृतियां दूंगा.