Post – 2017-07-03

होनी और करनी का फ़र्क़

“यह बताओ, नटवर लाल से तुम्हारी मुलाक़ात कब हुई थी।“

“बेवकूफों को सभी बातें नहीं बताई जातीं। विषय पर आओ।“

“यार, तुम हर बात को इस तरह उलट देते हो कि तुमसे बात करने पर लगता है, तर्क और प्रमाण का सहारा लेकर भी झूठ को सच सिद्ध किया जा सकता है।“

“इतने जाहिल हो तुम कि यह तक नहीं जानते कि हमारी पूरी न्यायप्रणाली इसी पर टिकी है। जिस दिन लोग सच बोलने लगेंगे अदालतों की और कसमें खाने की और प्रमाण देने, तर्क करने की जरूरत नहीं पड़ेगी । उनका कथन, उनका तेवर स्वयं तर्कातीत प्रमाण में बदल जाएगा।“

“चलो इतनी देर के बाद तुमने माना तो कि तुम जिसे तर्कसंगत और प्रामाणिक और न्यायोचित सिद्ध कर देते हो वह फरेब है।“

“तुम्हे पहली बार जाहिल कहा था तो मज़ा आया था, दुबारा कहते हुए दुःख हो रहा है कि तुमको यह तक याद नहीं कि मैं बहुत पहले अपने को उसका वकील घोषित कर चुका हूँ। जानते हो ऐसा करते हुए मैंने क्या किया?”

“उसने कोई जिज्ञासा न की तो स्वयं बताना पड़ा, “मैंने इस घोषणा के साथ ही अपने को उस किरात में रूपांतरित कर लिया जिसके ऊपर अर्जुन के सारे बाण टकरा कर मात्र गुदगुदी पैदा करते हैं। और यह देखो कि ऐसा करते हुए मैंने तुम्हारे ही हथियारों को तुमसे छीन कर तुम्हे निहत्था कर दिया, क्योंकि पार्टी और पार्टीजन, खूंटे और प्रतिबद्धता का डंका तुम्ही बजाया करते थे. मैंने प्रतिबद्धता की जगह सम्बद्धता का खुला और सम्मानजनक विकल्प चुना। वकील की सम्बद्धता जो तभी तक चल सकती है जब तक मेरा पक्ष मेरी सलाह मानता है।“

“यार लगता है आज फिर वह सवाल नहीं पूछ पाऊँगा जिसे पूछने चला था।“

“पूछो, अब मैं वकील की तरह नहीं एक सच्चे दोस्त की तरह बात करूंगा।“

“यह बताओ यह जो कुछ हो रहा है, वह क्या देश के हित में है?”

“यार, तुमने चीखना और रोना तो पैदा होते ही सीख लिया, इतने मदरसों में जाने के बाद भी बोलना क्यों नहीं सीख पाए, यह बताओगे?”

उसे ऐसे अटपटे जबाब की उम्मीद न थी, जो सवाल बन कर आये । चौंक कर पूछा, “मैंने गलत क्या कह दिया?”

“तुम होना और करना में फ़र्क़ नहीं कर पाए। होने को और होनी को हम रोक नहीँ सकते। बरसात हो रही है, भूस्खलन हो रहे हैं, सूखा पड़ सकता है, हम किसी व्याधि के शिकार हो सकते हैं, यह हमारे हित में या देश हित में हो या नहीं, इसे होना ही है. इसकी शिकायत नहीं की जा सकती। इसलिए तुम्हें कहना चाहिए था, ‘यह जो किया जा रहा है, वह क्या हमारे या देश या मानवता के हित में है। और यहां से सही गलत, अच्छा बुरा का और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को, और जिन्हें ऐसे लोगों को दंडित करने की जिम्मेदारी दी गई है वे यदि उसके होने पर कुछ न कर रहे हों तो उन्हें , हमें दोष देने का अधिकार है।

“परन्तु जो हो रहा है उसे होने से यदि किसी सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता था, तो इसमें शिथिलता बरतने वालों को यदि अपराधी नहीं तो उत्तरदायी तो सिद्ध किया ही जा सकता है ।“

”पर यहां भी होने और करने में फ़र्क़ है. समाज में जो हो रहा है वह समाज की मानसिकता से सम्बंधित है। इसमें धर्म, शिक्षा प्रणाली और साहित्य, कला, संचारमाध्यम और दर्शन की भूमिका है। यदि कुछ अनिष्टकर हो रहा है तो उत्तरदायी इनमें से किसी को, और यदि किसी विचारधारा ने सबको अधिकृत कर रखा हो तो उसे मानना होगा। जो हो रहा है और मानसिक कारणों से नहीं, व्यवस्था की चूक से हो रहा है तो उसके लिए उसे जिम्मेदार मानना होगा।“

“सर्वनाश कर दिया तुमने, अब आगे बात करने का कोई लाभ ही नहीं।“

“लाभ है पर तभी जब तुम यह देखना सीख जाओ की पहले ऐसा होता था तो क्या किया जाता था और भविष्य में ऐसा न हो इसके लिए क्या किया जा रहा है। कल इस पर सोच कर आना।“