“यार, मेरे मित्रों ने तो विचारों की उस निजता को खतरनाक मानते हुए कलेक्टिव कांशसनेस की बात का समर्थन किया है. और तुम जिस तरह बौद्धिक स्वायत्तता की बात करते हो उसे फासिज्म का लक्षण बताया है.”
“तुम और तुम्हारे मित्र व्यक्ति रूप में कोई वकत रखते ही नहीं. वे सोचते नहीं. कहीं से जुमले उठा लेते हैं और उससे सहमति जता कर मान लेते हैं कि दिमाग से वे भी कम लेते हैं. वे नारे लगाना जानते हैं. एक अकेले की आवाज दब जाएगी इसलिए मिल कर शोर मचाना.
कलेक्टिव कांशसनेस की बात का मतलब तक नहीं जानते बेचारे. इतिहास तक नहीं. इसे सबसे पहले एक फ्रेंच चिन्तक ने उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे पाए में उछाला था. पढो यह चेतना के किस स्तर से सम्बन्ध रखती है: In The Division of Labour, Durkheim argued that in traditional/primitive societies (those based around clan, family or tribal relationships), totemic religion played an important role in uniting members through the creation of a common consciousness (conscience collective in the original French). In societies of this type, the contents of an individual’s consciousness are largely shared in common with all other members of their society, creating a mechanical solidarity through mutual likeness.
“अब तुम समझ सकते हो कि यह नाजियों, फासिस्टो और कम्युनिस्टों को जिन्हें समग्रतावादी या तोतालितारियन कहा जाता है यह क्यों इतना पसंद था और तब यह समझ में आ जायेगा कि क्यों तुम जिन्हें बुद्धजीवी कहते हो वे यंत्र मानवों में बदल गए हैं और एक बटन दबते ही सभी एक्शन में आ जाते है।