कौसानी देवभूमि में है और अनासक्ति आश्रम देवभूमि में
‘‘कम्युनिस्टों को कोसने के लिए पहाड़ चढ़ने की क्या जरूर थी यार! यह काम तो तुम यहां भी अच्छी तरह कर लेते हो!’’ आज वह अच्छे मूड में था।
‘‘मैं सभी काम अच्छी तरह करता हूं और तुम शिकायत तक अच्छी तरह नहीं कर पाते। मैंने पहाड़ पर चढ़ाई इसलिए की थी कि सोचा था क्या पत्थरों में भी जान फूंकी जा सकती है?“
‘‘और पत्थरों से इतना प्यार हो गया कि दिमाग में काठ पत्थर भर कर नीचे उतरे!’’
मैंने हंस कर उसे दाद दी। वह अपने व्यंग्य को तेज बनाने के लिए अधिक गंभीर हो गया और मुझे आश्चर्य से देखने लगा। मुझे मुस्करता देख कर जमाया, ‘तकलीफ तो बहुत हुई होगी इतना बोझ ढोने में।’’
‘‘तकलीफ तो हुई पर यह जानने के बाद कि देवभूमि में पत्थर नहीं मिलते पत्थरों के बीच से ही वनस्पतियां और वृक्ष उग आते हैं। देवभूमि का अर्थ और उसकी महिमा का पता वहां जा कर ही लगा। पत्थर की तलाश में तो गया भी नहीं था पर सोचा था जड़ीभूत विचारधारा और अश्मीभूत संगठनों से जुड़े लोग तो मिलेंगे ही जिन्हें आदमी बनाने का मौका मिलेगा, परन्तु वहां जो लोग पहुंचे उसका डकिसी का पार्टी या संगठन से जुड़ाव था ही नहीं। अकेली एक सोच वह भी कहीं पीछे दबी हुई कि तुम संतप्त जनों की पीड़ा को अनुभव करते हो? उसे लेकर तुम्हारे मन में व्यग्रता होती है? उस संताप और अन्याय को कम करने के लिए अपने ढंग से कुछ भी करते हो या नहीं। यह मानवतावाद का भी सर्वोत्तम रूप है और मार्क्सवाद का भी सारतत्व। मैंने पूछा भी की इनमें कम्युनिस्ट दलों से जुड़ा कोई व्यक्ति क्यों नहीं, तो सभी मुस्कराने लगे, बोला कोई नहीं, एक ने चुपके से बताया हम चाहते थे जैसे सभी विचारों ले लोग आए हैं, वैसे ही वे भी आएं, परन्तु देवभूमि की कुछ ऐसी माया है कि कठोर दिल और दिमाग के लोग बीच रास्ते से ही लुढ़क कर नीचे चले जाते हैं।
बात मेरी समझ में आगई, तभी तो असुर राक्षसों से घबरा कर देवों ने पहाड़ियों पर शरण ली थी और यहाँ से स्थाई खेती आरम्भ की थी!
वह समझ रहा था मेरा निशाना क्या है. एकाएक ताव खा गया, “देखो तुम पांच दिन में ही वहां से भाग खड़े हुए और मैंने एक महीना कौसानी में बिताया है और टिका भी था अनासक्ति आश्रम में।”
मैंने जोर का ठहाका लगाया, “मैं कहता तो तुम बुरा मानते पर खुद ही मान लिया की तुम्हारा संगठन तुम लोगों को क्या बना देता है। और देखो तुम बीच से नहीं लुढ़के क्योंकि तुम अनासक्ति आश्रम जा रहे थे. अनासक्ति आश्रम में देवभूमि में है यह तो तुम्हे पता ही नहीं था. पता होता तो अपनी ट्रेनिंग के कारण देव नाम सुनते ही भारतभूमि में ही चक्कर खाकर गिर जाते।”
वाक्य पूरा होने पर उसने भी ठहाका लगाया, “आज का दिन तुम्हारा रहा।”