Post – 2017-06-15

सफाई को ही स्वछता कहते हैं

पर जो बात सफाई में है उसे स्वछता छू भी नहीं सकती. इसलिए नही की सफाई धूल मिटटी से सीधा सम्बन्ध रखती है, इसलिए दोनों ने हाथ मिलाया तो सफाई का हाथ कुछ साफ़ हो जाएगा और स्वछता का पहले से कुछ मैला; कारण यह भी है कि हाथ की सफाई और हाथ की स्वछता मैं भी लोग फ़र्क़ करने लगे हैं. वह भी तरह तरह से. बांटनेवाले शब्दों को भी बाँट लेते हैं, अर्थ को भी बाँट लेते हैं, समाज को भी बाँट देते हैं, यहां तक कि दिलों को भी बाँट देते हैंऔर हद यह है कि यदि कोई कहे कि मैं बटे हुओं को जोड़ूंगा, सबको साथ लेकर सबका विकास करूंगा तो लोग उसकी नीयत की सफाई पर संदेह करने लगते हैं और जवाब देते हैं कि हम बंट कर रह सकते हैं पर जोड़ने वालों के झांसे में आकर जुड़ नहीं सकते क्योंकि हम मानते हैं कि वह तोड़ने और फोड़ने को और अपने में मिलाने को ही सबका साथ सबका विकास मानता है.सबको जोड़ने का अर्थ है सबका सफाया, विश्वास न हो तो उसके जोड़ने के प्रोग्राम के बाद से भारतीय राजनीति में दूसरे दलों का हाल देख लो. अब आप सबका सफाया की जगह सबकी स्वछता का प्रयोग तो कर नही सकते. आप समझाना चाहें कि भाई उसकी बात मानने वाले जुड़ जाते हैं, न माननेवाले टूटते नहीं हैं, चूर चूर हो जाते हैं तो जवाब मिलेगा हम चूर तो पहले से हैं, जोड़े हुए के नशे में. हमें कौन चूर चूर कर सकता है
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और अंतिम फ़र्क़ यह कि स्वछता पहाड़ चढ़ सकती है, पहाड़ चढ़ कर इतने रूपों में दीख सकती है कि उसपर बहस तक की जा सके पर बहस के लिए थोड़ी तैयारी तो आप को भी करनी होगी इसलिए इसे कल के लिए स्थगित रखते हैं.