दुर्भाग्य का जश्न
कल मैं अपनी पुस्तक की प्रेसकापी तैयार कर रहा था। पाठ में विगत वर्ष नवम्बर की पोस्ट में यह अंश थाः
‘‘क्या आपने नोट किया कि आज कल सारे समाचार दूसरे अपराधों से भरे रहते हैं, आत्महत्या तक के मामले प्रेमी के दगा, कैरियर में बाधा, प्रेमिका के छल और धन दौलत के दूसरे फसादों से जुड़े पढ़ने को मिलते हैं, किसानों की आत्महत्या के नहीं मिलते हैं।
‘‘क्या आपको पता है, सच तो यह है कि मुझे भी पता नहीं है, मैं भी आपके ज्ञान भरोसे बैठा हूं कि क्या यह समाचार माध्यमों की फितरत है और वे आत्महत्या की खबरों को दबा कर मोदी के इस दावे को सच कर रहे हैं कि अच्छे दिन आ गए, और संतुलन बनाए रखने के लिए पहले पन्ने से ले कर खेल के पन्ने तक उन्हें गाली दे रहे हैं, या सचमुच ऐसा हुआ है।’’
आज कल चल रहे किसान आन्दोलन और उनकी बदहाली से होने वाली आत्महत्याओं के आंकड़े देख कर चक्कर खा गया। मैंने उक्त पोस्ट लिखते समय जांच पड़ताल क्यों न की? घबराकर इंटरनेट छानने लगा। पता चला सारे लेख, वक्तव्य जो किसानों के प्रति सहानुभूति दिखा कर आगजनी, तोड़ फोड़ को किसानों का वाजिब गुस्सा और अपनी बदहवासी में प्रशाशन द्वारा उठाए गए कदमों के बाद के हैं। 2016 में जैसे न कोई आत्महत्या कर रहा था न मर रहा था, या मर रहा था तो केवल नोटबंदी की लाइन में खड़ा होने के कारण। सारा आक्रमण नोटेबंदी पर. अन्य विषय ग़ायब.
मैं किसान परिवार का हूं। शिक्षा के बाद भी किसानी करना चाहता था पर इसकी अनुमति नहीं मिली। किसानों की पीड़ा को अच्छी तरह समझता हूं।
किसानों की दशा ब्रिटिश काल से ही, सच कहें तो मध्यकाल से ही इतनी दुखद रही है कि उनसे बुरी दशा भूमिहीन कृषिमजदूरों की ही कही जा सकती है। अतः मेरे मन में उनके प्रति गहरी सहानुभूति है। परन्तु कुछ तथ्य चैंकाने वाले मिले जिनको सामने रखते हुए आप सभी को इन पर विचार करने को आमंत्रित करता हूंः
1. 2015-16 के विषय में जो अखबारी सूचना थी वह कांग्रेस के एक राजनेता का बयान था जिसे पीटीआई ने जारी किया था और डीएनए तथा इंडिया टुडे ने बिना छानबीन के छाप दिया थाः % “The NDA government has become a curse of death for the farmers. Thirty-five farmers are being driven to suicide everyday in the country. Altogether 12,602 peasants committed suicide in 2015,” AICC spokesperson Dr Ajoy Kumar told reporters here…The party said of the 12,602 peasants who committed suicide, 8,007 were farmers while the rest were agriculture labourers. DNA (This article has not been edited by DNA’s editorial team and is auto-generated from an agency feed.)The party said of the 12,602 peasants who committed suicide, 8,007 were farmers while the rest were agriculture labourers. DNA (This article has not been edited by DNA’s editorial team and is auto-generated from an agency feed.)
2. विकीपीडिया में प्रकाशित आलेख से जानकारी मिली :The National Crime Records Bureau of India reported in its 2012 annual report, that 135,445 people committed suicide in India, of which 13,755 were farmers (11.2%).[64] Of these, 5 out of 29 states accounted for 10,486 farmers suicides (76%) – Maharashtra, Andhra Pradesh, Karnataka, Madhya Pradesh and Kerala. In 2011, a total of 135,585 people committed suicide, of which 14,207 were farmers. In 2010, 15,963 farmers in India committed suicide, while total suicides were 134,599. जब की 2004 जिसमें यह आंकड़ा 18000 से भी उूपर चला गया था, को वर्षा के औसत में कमी के कारण मानें तो उसे छोड़ सकते हैं, पर 2005से 2013 तक का काल इन्द्रदेव की कृपा का काल माना जाता रहा है उसमें भी किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 2014 जिसमें फिर वर्षा में कमी के कारण हालात 2004 जैसे ही थे, और उसके बाद भी भाजपा के वर्तमान दौर में वैसी त्रासदी से न गुजरना पड़ा और आत्महत्याओं की दर कम रही, न कि बढ़ी। नोटबंदी के बाद अंतर आया पर तब भी पहले सके अधिक बढ़ी नहीं।
3. मैंने पीछे गोप्रबंधन पर एक पोस्ट लिखी थी जिसमें यूं ही अंदाज लगाया था कि उर्वरक औ कीटनाशक किसानों की दुर्दशा का एक कारण हैं। इस खोज में वह सचमुच सही साबित हुआ। पीछे के अध्ययनों1- में कहा गया थाः – Ganapathi and Venkoba Rao analyzed suicides in parts of Tamil Nadu in 1966. They recommended that the distribution of agricultural organo-phosphorus compounds be restricted. Similarly, Nandi et al. in 1979 noted the role of freely available agricultural insecticides in suicides in rural West Bengal and suggested that their availability be regulated
4. देश के उन्तीस राज्यों में से केवल पांच में जिनको आर्थिक दृष्टि से अधिक समृद्ध माना जाता है आत्महत्या करने वाले किसानों का 76 प्रतिशत आता है जब कि शेष 24 में चैबीस प्रतिशत: 5 out of 29 states accounted for 10,486 farmers suicides (76%) – Maharashtra, Andhra Pradesh, Karnataka, Madhya Pradesh and Kerala.
5. उत्तर प्रदेश और बिहार जो आकार में बड़े, आबादी में उससे भी बड़े, औद्यागिक विकास में पिछड़े और इसलिए पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं, उनमें किसानों की आत्महत्या का दर न के बराबर है, Farmer suicides rates in Bihar and Uttar Pradesh – two large states of India by size and population – have been about 10 times lower than Maharashtra, Kerala and Pondicherry.[69][70] In 2012, there were 745 farmer suicides in Uttar Pradesh, a state with an estimated population of 205.43 million.[71] In 2014, there were eight farmer suicides in Uttar Pradesh.
6. आत्महत्यायें इस बात का प्रमाण नहीं हैं कि अन्य राज्यों या क्षेत्रों की तुलना में आत्महत्या करने वाले राज्यों में किसान अधिक बदहाल हैं, अपितु इसके पीछे लोभ को उभार कर, संचार माध्यमों का प्रयोग करते हुए, राजनीतिक हथकंडा बना लिया गया है और यह हथकंडा वहीं और तभी काम में लाया जाता है जब कांग्रेस वहां सत्ता से बाहर होती है और आगजनी, तोडफोड को उभार कर एक दुर्भाग्य को अपने सौभाग्य में बदलना चाहती है।
7. आत्महत्याओं का एक अन्य कारण व्यापारियों और कारोबारियों के द्वारा जल्दी अमीर बनने की आकांक्षा में अधिक के अधिक धन बटोरने की होड़ में कपास आदि की खेती, उर्वरक, जल, कीटनाशक आदि के सबसे अधिक प्रयोग होते हैं।
8. कर्जमाफी इसका इलाज नहीं है और यह प्रयोग उत्तर प्रदेश में भी नहीं होना चाहिए। इसका आरंभ मनमोहन सिंह ने 2004 में किया था और तब से इसने समस्याएं अधिक पैदा की हैं। सबसे बड़ी बात आत्महत्या करने वाले किसानों से मिलता जुलता अनुपात उन राज्यों में कृषि मजदूरों का है जिन्हें कर्ज मिल ही नहीं सकता था। कर्जमाफी से उनकी आत्महत्या पर कोई प्रभाव पड़ने तो जा नहीं रहा।
9. आत्महत्या गरीबी और बदहाली का सूचक नहीं है, तंगहाली में जीने का संघर्श कठिन हो जाता है और इसी के अनुपात में जीने का मनोबल। इसे समझ न पाएं तो अमरकांत की जिन्दगी और जोंक पढ़ें।
10. कर्जमाफी आत्मघाती है, बुरी लत डालने जैसी है, इसमें अधिक से अधिक व्याजमाफी का सहारा लिया जाना चाहिए। अन्यथा कर्ज का रास्ता ही आगे के लिए बंद करना एकमात्र उपाय रह जाएगा। दूसरा उपाय भुगतान की मियाद को कुछ बढ़ाना हो सकता है।
11. सुना मध्यप्रदेश ने किसानों को सबसे अधिक राहत दी – बिना व्याज के कर्ज जिसके कारण वहां के मुख्यमंत्री किसानों के मामा जी कहे जाने लगे। मामा जी भूल गए कि कांग्रेस इतनी गिरी हुई राजनीति करती है कि वह भानजों को ही मामा की जान लेने को भड़का सकती है।
१२. औद्योगिक विकास वाले राज्यों में किसानो का आत्मसम्मान घटा है जो खेदजनक तो है पर सामंती जकड़ भी संभव है कम हुई हो।
१३. भाजपा सरकार ने किसानों के लिए जितना काम किया है और जिस दूरदर्शिता से किया है वह अब तक किसी अन्य ने नहीं किया. फसल का बीमा, आपदा में राहत और आकस्मिक मृत्यु में अल्पतम भागीदारी पर २ लाख तो मुझ जैसे अल्पज्ञ की भी जानकारी में है. वह अपना काम कर रही है पर गौर करें हमारे बुद्धिजीवी क्या कर रहे हैं।