Post – 2017-05-28

जलवाची शब्द ‘सर,
सर् सर् – हवा या पानी के प्रवाह की ध्वनि का अनुकरण
सर /सल- पानी
सर – प्रवाह, गति
सर – तीर (ध्यान दें तीर भी जलवाची ‘तर’ से जुड़ा है)। २. चुभने वाला
सर / सरोवर – जलाशय
सर – वह दंड जिससे सर बनाया जाता था ।
सरिया – सरदंड की पतला और लंबा
सलाई – पतली तीरी अर्थात् तीली
सार – पानी, निचोड़ > सारांश – निचोड़ बिन्दु, निष्+कर्ष – खींच कर निकाला हुआ, सार सत्य
सीर – मीठा > शीरीं – मधुर, शीरनी – खीर
सीरा/ शीरा – गुड़ या चीनी का गाढ़ा घोल,
सिरा – अन्त
शिर – सर्वोपरि भाग या अंग
सरण – प्रवाह, गति; सरणी – मार्ग; सड़क
सड़न, सड़ना, सड़ांध, सड़ियल, सिड़ी, संडास
सरि (+ता); सरति – प्रवाहित होता है; सरस्वती; सरस्वान
सरकना; सर्पति, सर्प; सरसराहट
सरासर- लगातार
सरपट / सर्राटा – तेज गति
सरीसृप – सांप
सर्ज (वै.)- बाहर निकलना, जैसे सोमलता से पेरकप सोमरस, (सृजामि सोम्यं मधु)।E. Surge, surf, surface, shirk, shrink,
सर्ग (वै.) सर्गप्रतक्त – प्रखर वेग से गतिमान (अत्यो न अज्मन् त्सर्ग प्रतक्त:)।
सर्गतक्त – गमनाय प्रवृत्त:( न वर्तवे प्रसव: सर्गतक्त) ।
सर्तवे (वै.) – मुक्त प्रवाह के लिए (अपो यह्वी: असृजत् सर्तवा ऊ ) ।
सर्पतु – (वै.) प्रसर्पतु, अभिगच्छतु (प्र सोम इन्द्र सर्पतु )।
अतिसर्पति – घुन की तरह प्रवेश कर जाता है (यत् वम्रो अतिसर्पति) ।
सृप्र – क्षिप्र (सृप्रदानू ); सृप्रवन्धुर – झटपट जुत जाने वाला पशु ।
कौरवी प्रभाव में सर > स्र और सर्ज > सृज् बन जाता है जिसके बाद सृजन
सर्जना सिरजने के आशय में प्रयुक्त होकर नई शब्दावली का जनन करता है। ऋ. में भी सृजाति प्रयोग सृजति के आशय में देखने में आता है ।
स्रग – माला
सर्व – समस्त; सब, (तु. सं/ शं – जल > समस्त; समग्र; अर -जल, अरं – सुन्दर, पर्याप्त > E. All; कु – जल > कुल – सकल; अप/ आप – जल > परिआप्त > पर्याप्त आदि )।
शीर्ण – गला हुआ
त्सर (वै) – क्षर (अभित्सरन्ति धेनुभि:; मध्व: क्षरन्ति धीतय:)।
वर्ण विपर्यय रस जिसके साथ भी पानी, गति,
रस -पानी, द्रव, फल का जूस, शीरा (रसगुल्ला, रसमलाई)
रस – आनन्द
रस – कोई भी स्वाद, षट् रस
रस – औषधीय विपाक , २. रसायन, ३. रसोई,
रस – भावानुभूति के रूप, काव्य के नव रस
रसना,
रसा – धरती
रसिक – काव्य मर्मज्ञ, सहृदय
रास – समूह नृत्य, E. Race, rash, rush, ross,
रास – लगाम
रश्मि – किरण
रश्मि -बागडोर, रसरी, रस्सी/ रस्सा
रेसा, रेशम,
रस्म, रसूम
रसति – चलता है; रंहति, रंहा – नदी नाम
रास्ता – जिस पर चला जाता है
राह, राही, राहगीर, रहजन, राहजनी
रिस – हिंसा, वै. रिशाद – हिंसकों का भक्षक, अग्नि
रिस / रीसि > रुष्टता, क्रोध
रिसना – चूना, बहना
रुश् -लाल, रोशनी, रोष, रोशनाई

मैं चाहता हूँ पढ़नेवाले इस खेल में शामिल हों और उन शब्दों और रूपों का सुझाव दें जो मुझसे छूट गए हैं. जैसे मैंने सर के लकारांत रूप को और फारसी, अरबी और अंग्रेजी के प्रतिरूपों को नहीं लिया. कई बार मेरे पाठक ऐसी बातों की और ध्यान दिलाते हैं जो मुझे पहले सूझी ही न थीं. यही हम सभी को बराबरी पर लाता है और मित्र बनाने का अधिकारी भी.

यूरोपीय व्युत्पत्ति पर यह सोच कर झिझकें नहीं कि अमुक की व्युत्पत्ति भिन्न है. यह बात उससे अधिक औचित्य से संस्कृत धातु प्रत्यय पद्धति के विषय में कही जा सकती है. परन्तु पहले किसी ने सोचा ही नही की पूरी की पूरी भाषा अनुनादी स्रोत से विक्सित हो सकती है. वे अधिक से अधिक सर को सर सर ध्वनि का अनुनाद मन कर आगे बढ़ जाते थे जब कि हम पते है की एक नाड से सैकड़ों शब्द और व्यंजनाएँ अधिक स्वाभाविक और तार्किक रूप में विकसित हो रही हैं और अनगिनत ऎसी हैं जिनका हमें ध्यान नहीं.
फ़ारसी प्रतिरूपों को पहचानना आसान है, अरबी शब्दों में ध्वनि और अर्थ की समानता के बाद भी दुविधा बनी रहती है पर यह न भूलें उत्तरी पश्चिम एशिया में २००० इसा पूर्व से इस्लाम के उदय तक ‘आर्य-भाषिओं’ की प्रभावशाली उपस्थिति रही है.