Post – 2017-05-17

देववाणी (पैंतीस)
पानी, आग और पत्थर

हमने देखा, जब हम चन्द्रमा कहते हैं तो कई बार चांद कहते हैं। अर्थात अपने अपने शब्दों से चांद कहने वालों के मिलने के कारण हम उन सबके शब्दों को मिला कर एक कर देते हैं, इसलिए कई भाषाओं में प्रयुक्त चांद की संज्ञा को एक के बाद एक, ताबड़तोड़ दुहराते हैं और वह एक शब्द बन जाता है।

इसके लिए भाषावैज्ञानिकों ने कोई शब्द गढ़ा अवश्य होगा, वह मुझे याद नहीं. फिर भी भारतीय भजाषाओँ का अध्ययन करने वालों ने इसे अवश्य लक्ष्य किया होगा. तन+नीर, ताल +आब, जल+आब के दृष्टान्त हम दे आये हैं, परन्तु यह भी संभव है कि पॉलीग्लॉस या एक ही क्षेत्र में अनेक भाषाओँ और उनके चलन का ध्यान रखनेवालों को भाषा के विकास में इसकी भूमिका का उन्हें ध्यान न रहा हो, क्योंकि वे भाषा की आनुवांशिकता से इतने ग्रस्त थे की छिटफुट ऐसे प्रस्तावों के आने के बाद भी उन्होंने भाषा की निर्माण प्रक्रिया में इसकी भूमिका का सही आकलन नहीं किया। फिर भी मेरा ज्ञान अपर्याप्त है और किसी को लगे इसमें सुधार अपेक्षित है तो हमारी सहभागिता होगी। यद्यपि इससे हम जिस पक्ष पर बात करने जा रहे हैं उस पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा।

आज हम देखेंगे कि जब हम कल कहते हैं तो एक ही भाषा के तीन शब्दों को एक साथ बोलते हैं, पत्थर, पानी, और आग। सन्दर्भ से ही यह पता चलता है कि इन तीनों में से हम किसकी बात कर रहे हैं । विचित्र स्थिति है परन्तु भाषाविज्ञानियों के लिए यह कोई नई चीज नहीं है। अंग्रेजी में इसे होमोफोनी कहते हैं। सुनने में शब्द एक लगतs है परन्तु वे अलग अलग हैं। यह दूसरी बात है कि जिस स्तर पर उतर कर हम अपनी बात करने जा रहे हैं उस तक पहुंचने का रास्ता ही बन्द रहा है।

परन्तु यदि आप कहना चाहें कि आग और प्रकाश को अपनी संज्ञा जल से ही मिली होगी] आपने स्वयं यह सिद्धांत बघारा है तो इज्जत बचाने के लिए आपकी बात मान लूंगा। कारण,आग और प्रकाश से स्वतः तो कोई ध्वनि नहीं पैदा होती परन्तु आग लगने पर ज्वलन के लिए जो ऑक्सीजन ख़त्म होती है। उससे पैदा हुए निर्वात को भरने के लिए हवा का जो दबाव पैदा होता है उस टकराहट से ज्वाला के अनुपात में ही हाहाकार पैदा होता है। यह ध्वनि भले हवा के दबाव की मानी जाय, पैदा तो यह आग लगने पर ही होती है! एक दूसरा कारण भी है. आग लगने पर जलने वाले काठ के कमजोर पढ़कर टूटने से तड़कने की जो आवाज पैदा होती है, जिसे कोई अपनी भाषा की ध्वनिव्यवस्था के अनुसार कड़, कट , कल, के रूप में अनुनादित या उच्चारित कर सकता है, इसलिए जिस सज्जनता से मैंने आप कि बात मान कर पुनर्विचार किया उसी से आप मेरे इस प्रस्ताव को भी मान सकते हैं कि कल आग से भी पैदा होनेवाली ध्वनि है और इसलिए उसके लिए या उससे जुड़े कार्यव्यापार के लिए इसका अर्थोत्कर्ष किया जा सकता है।

पत्थर में आवाज नहीं होती या होती है तभी जब पानी या हवा या भूकंप के कारण उसके खंड गिर कर किसी चीज से टकरायें। पत्थर को पत्थर से तोड़ने और गढ़ने का काम मनुष्य ने बहुत पहले आरंभ कर दिया था । यह काम इतने प्रारंभिक चरण पर आरंभ हुआ कि यह तय करना कठिन है कि उसने पहले औजार बनाना सीखा या बोलना और इसलिए मनुष्य के हस्तक्षेप से पत्थर से आवाज भी पैदा हो सकती थी और चिनगारियां भी।

कड़, खड़, गड़ ऐसी ही ध्वनियां हैं जिनका प्रयोग कंकड़ से ले कर पत्थर तक के लिए किया जाता है। ध्वनि के उत्पन्न होने और उसके वाचिक मूल्य को पहचानने को हम अवश्य कुछ विलंब से जोड़ सके होंगे। समस्या तब पैदा होता है जब हम पाते हैं कि इनके अन्त में आने वाली ध्वनियां सभी भाषाओं में नहीं पाई जातीं। मूर्धन्य ड़ की निकटतम ध्वनि मूर्धन्य ळ है और वह भी सभी बोलियों में नहीं मिलती ल की ध्वनि अवश्य मिलती है। (incomplete)