जिस बात की मुझे शिकायत है वह यह कि मेरे मित्रगण आनन्द लेते हुए, स्वयं सोचते और शब्दों से खेलते हुए, जो मुझसे छूट गया उसकी ओर ध्यान देते और दिलाते हुए नहीं पढ़ते हैं। ज्ञान बटोरने पर यह बोझ बन जाता है। मैं एक उदाहरण से अपनी बातर कहूं। जब मैंने यह कहा कि जिस की वस्तु क्रिया या सत्ता में अपनी ध्वनि नहीं है उसे अपनी संज्ञा जल से मिली है जिसकी अनन्त ध्वनियां हैं और फिर तर से तार, आंख के तारे, आसमान के तारे तक का क्रम जोड़ा तो किसी का ध्यान इस ओर जाना चाहिए था कि तार या धागा, तर्क, तर्कु का भी संबंध क्या तर से ही नहीं है, प्रवाह में न दिखाई दे पर गुदाज छिल्के वाले पौधों को तोड़ने पर उनकी आर्द्रता तार के रूप में दिखाई देती है पीजा की तरह। इससे तार का संबंध तो जुड़ता ही है । और फिर एक नई दिशा अर्थ और शब्द की खुलती तार के लेकर तारतम्य तक जाती । इसी तरह तर्ज, तरह, तरीका, तौर, तरफ के पीछे क्या है। जब आप सर्जजनात्मक पाठ करते हैं तो जैसा मनोरंजन होता है वैसा जुए के खेल या बुझौवल में ही मिल सकता है। कोशिश करें तो बहुत कुछ जुड़ेगा भी और छंटेगा भी ।