Post – 2017-05-14

मुझे जिस बात का डर था वह सामने आ गया। मैंने सोचा था लोग हस्तक्षेप करेंगे, गलतियों को चिन्हित करेंगे और इस तरह यह काम अधिक सुलझे रूप में संपन्न हो सकेगा। पसन्द का इसमें कोई खास मतलब नहीं क्योंकि इस विषय के अधिकारी लोगों की पसन्द ही कोई मानी रखती है, इस तरह का कोई व्यक्ति मुझे इस देश में ही नहीं अन्यत्र भी नजर नहीं आता। यह सोच ही पिछली सोच से बिल्कुल अलग है। कमियां सामधारण जानकारी रखने वाला भी निकाल सकते हैं और वे मेरे कहने में चूक या कोई बात छूट जाने या विषय को स्पष्ट न कर पाने से ले कर किसी भी तरह की हो सकती हैं। ऐसा हो नहीं रहा है इसलिए भाषा पर मैं मात्र एक सामान्य पोस्ट और करूंगा और वह बोलियों की स्वीकृति, हिन्दी से उनके संबंध और इसका राष्ट्रभाषा के भविष्य से होगा। बाकी का लेखन मैं पुस्तकीय अपेक्षाओं को ध्यान में रख कर अपने तक सीमित रखूंगा जिससे सार्वजनिकता से होने वाले सरलीकरण से बचा जा सके और तथ्यांकन में किसी की बोरियत या रुचि की बाधा से स्तर प्रभावित न हो।