मैं शोहरत से घबराता हूं। काम स्वयं इतना आनन्द देता है कि चाहता हूं काम भले मुझसे कोई कराए पर काम सलीके से हो, और उसकी शोहरत वह ले जाये जो इसे सलीके से, बहुग्राह्य और बहु मान्य बना सके। हम जिस युग में जी रहे हैं उसमें इस बात का विश्वास दिला पाना कठिन है, परन्तु वे कृतियां जिन्हें मैं अनन्य कह सकता हूें, उन्हें लिखने को मैं दूसरों को उकसाता रहा। मैं काम को निखोट बनाना चाहता हूं। सर्ववमान्य बनाना चाहता हूें। जिनके पास समय, रुचि, समर्पणभाव दिखाई देता है उनसे याचक भाव से अनुरोध करता हूं कि इस काम को समझो, और वे उसे ग्रहण नहीं कर पाते तो ही सोचता हूं कि इसे अभिलिखित तो कर दूं। मेंरे सभी काम अभिलेख हैं, मेरी नजर में असन्तोषजनक पर साथ ही अनन्य, क्योंकि उस दृष्टि से दुनिया के किसी विद्वान ने इस तरह सोचा ही न था। आत्मविश्वास की कमी नहीं है, इस बात का डर अवश्य है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। अकेला व्यक्ति सही होते हुए भी पूरी तरह सही नहीं हो सकता। उसे उन कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए । ऐगेल्स और मार्क्स को जो सुविधा प्राप्त न थी और वे दोनों आपस में ही बहस करते हुए अपनी सोच को दुरुस्त करने का प्रयत्न करते थे वह सुविधा मुझे प्राप्त है, पर उसका लाभ नहीं मिल रहा। वह आलोचना से, कठोर हो तो भी, मिल सकता है। वह मुझे नहीं मिल रहा । आश्वस्त करें कि आप तारीफ न करेंगे, आपतित्यां दर्ज करेंगे। फेयबुक ये अच्छा मंच इसके लिए मिलेगा भी नहीं।